मलूटी: मंदिरों का एक अनोखा गांव
मलूटी के मंदिरों से साक्षात्कार के दौरान यह प्रश्न स्वत: उभरता है कि आखिर वे कौन-सी परिस्थितियां हैं, जब स्थानीय जनमानस अपने धरोहरों के प्रति उदासीन हो जाता है।
मलूटी के मंदिरों से साक्षात्कार के दौरान यह प्रश्न स्वत: उभरता है कि आखिर वे कौन-सी परिस्थितियां हैं, जब स्थानीय जनमानस अपने धरोहरों के प्रति उदासीन हो जाता है।
एक फिल्मी कहानी की तरह है बिहार के ख्यातिलब्ध कलाकार गुप्ता ईश्वरचंद प्रसाद का जीवन। टेराकोटा से प्रेम, कला में जीवटता, वरिष्ठ कलाकारों का सानिध्य, विदेश की यात्रा, सबकुछ गंवाना और फिर फकीरी…
आज व्यावसायिकता में लोककला के मूल तत्व बिखर रहे हैं। उनकी सहजता, सरलता नष्ट हो रही है। कला में परिवर्तन ग्राह्य है पर उनमेंं उच्छृंखलता का कोई स्थान नहीं है।
वरिष्ठ कलाकार आनंदी प्रसाद बादल बिहार में आधुनिक कला के विकास के साक्षी रहे हैं। उनकी कला-यात्रा को समझना बिहार में आधुनिक-कला की यात्रा से एक साक्षात्कार समान है।
दुलारी देवी का जन्म मधुबनी के रांटी गांव के एक मछुआरा परिवार में 27 दिसंबर 1967 को हुआ। उन्हें बिहार की लोककला में एक यथार्थवादी चित्रकार का विशेषण दिया जाता है।
सीता देवी का जन्म 1914 में बसहा के एक महापात्र ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चुमन झा और मां का नाम सोन देवी था। उन्होंने अपनी और नानी से चित्र बनाना सीखा था।
पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कथक नृत्यांगना शोवना नारायण जितनी लोकप्रिय परंपरागत कथक प्रेमियों के बीच हैं, उतनी ही लोकप्रिय समकालीन या कंटेंपररी कथक प्रेमियों के बीच भी।
1970 के दशक में जब ब्राह्मण और कायस्थ जाति की परंपरागत चित्रकला अपनी लोकप्रियता की ओर बढ़ रही थी, तब उसे स्थानीय लोक कलाकारों ने स्पष्ट चुनौती दी।
ऐसा कहा जाता है कि मिथिला चित्रकला में एक्रेलिक रंगों का पहला प्रयोग महासुंदरी देवी ने किया था और उन्होंने ही साड़ियों पर सबसे पहले मिथिला चित्र बनाये थे।
जब हम यह कहते है कि कला का क्या मोल, वह तो अनमोल है, तब हम लोक कलाकारों की दुर्दशा से अपनी नजर फेर लेने का स्वांग करते हैं। पढ़िये सिक्की कला पर मिथिलांचल से यह रिपोर्ट।
कुमुद शर्मा बिहार की पहली महिला चित्रकार थीं, जिन्होंने राष्ट्रीय समकालीन कला आन्दोलन में अपनी अहम भूमिका निभायी। उनका जन्म 1926 में पटना में हुआ।
विंध्यवासिनी देवी को ‘’बिहार कोकिला’’ भी कहा जाता है जिन्होंने न केवल बिहार के लोकगीतों को अपनी आवाज दी बल्कि उनका संकलन और विस्तार दोनों किया।
मिथिला चित्रकला जिन कलाकारों के जरिए वैश्विक पटल पर उभरी, उनमें एक पद्मश्री जगदम्बा देवी हैं। उनका जन्म 1901 को मधुबनी के भजपरौल में हुआ था।
स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी मंजूषा चित्रकला की सबसे ख्यातिलब्ध चित्रकार हैं।1980 के दशक में सरकारी प्रयासों से यह चित्रकला प्रकाश में आयी, जिसमें चक्रवर्ती देवी का महत्वपूर्ण योगदान था।
सत्तर हिरणियां कहती हैं, ‘‘हे राजा हमारे पति को क्यों मारते हो? उसके बिना हम हिरणियां इस वन में विधवा डोलेंगी। तू हममें से दो चार को मार ले, हमारे भरतार को छोड़ दे।”
विक्रमादीत रानी और नौकर को महल में साथ–साथ देख लेता है। रानी तब नौकर से कहती है कि तुम घबराओ मत, मैं अपने देवर को देश निकाला दिलवाऊंगी।
रात के आधे पहर रेंगटा लाखा कुम्हार को आवाज़ लगाता है कि पैपावती नगरी के राजा को जाकर कहे कि वह अपनी लड़की पानदे बाई का विवाह उससे कर दे।
राजा भरतहरी की कथा देवी दुर्गा की स्तुति से शुरू होती है। कथा को गद्य और पद्य दोनों में गाया जाता है। बीच–बीच में नैतिकता का संदेश देते दोहे बोले जाते हैं।
Papier-mache is an ancient craft of Bihar that was used for the preparation of masks for different dance forms. It is a construction material made from paper pulp.
लोक-कलाओं का वर्तमान इसकी गवाही देता है कि जब तक उन्होंने क्षेत्रीयता के दायरे से बाहर झांकने की कोशिश नहीं की है, उनका दृष्टिकोण व्यापक नहीं हुआ, उन्हें पहचान नहीं मिली है।
आर्ट कॉलेज की स्थिति यह है कि मेरे पास लोटा भर पानी है और छात्र उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें बाल्टी भर पानी मिल जाए। यह कैसे संभव है। हमने अपने पात्र बड़े किये ही नहीं।
Brass and Bell Metal art is about 300 years old in Bihar. It is popular for decorative items like idols of God-Goddesses, statues and other daily utility items.
Manjusha art is the folk art of “Ang Pradesh” whereas Madhubani painting is of the Darbang Pradesh. Between 1931 – 48, this art was brought to the forefront.
चाहे बच्चों की जरूरतों को पूरा करना हो, अपने ऊपर खर्च करना हो, किसी को टिकुली-बिन्दी, साड़ी-ब्लाउज या अपनी पसंद का कोई अन्य सामान लेना हो, हम अपने परिवार से पैसा नहीं मांगते।
मिट्टी से कलाकृतियां बनाना जटिल और श्रमसाध्य काम है। इसके लिए काफी धैर्य की जरूरत होती है क्योंकि एक कलाकृति कई चरणों से गुजरने के बाद पूरी होती है।
The tradition of the stone craft of Bihar dates back to the ancient eras. It had reached its zenith during the Mauryan period.
The most famous exponent of Sikki craft was Bindeshwari Devi. She had received National Award for Sikki craft in 1969, from the hands of Shri Indira Gandhi, the then Prime Minister of India.
One of the best-known figures from Madhubani, Gauri Mishra questioned and challenged the orthodoxies and worked relentlessly for women’s empowerment, says Sujata Prasad
फणीश्वरनाथ रेणु ने कई चर्चित कहानियां लिखी हैं। ‘ठेंस’ उनमें से एक है। यह कहानी एक छोटे से गांव के छोटी जाती के उस बड़े हृदय वाले कारीगर की है जो अंत में आपके हृदय में अपनी छाप छोड़ जाता है।
आज हिन्दी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्मदिन है और उनके जन्मशती वर्ष का प्रवेश भी। रेणु जी का जन्म बिहार के अररिया जिले में फारबिसगंज के पास के गांव औराही हिंगना में 4 मार्च 1921 को हुआ था।
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