‘लोक’ और ‘दलित’: व्युत्पत्ति, अर्थ एवं विविध प्रयोग

लोक’ और ‘दलित’ न केवल अलग-अलग शब्द हैं बल्कि उनके प्रयोगों के संदर्भ भी अलग-अलग हैं। ‘लोक’ अत्यंत ही प्राचीन शब्द है जबकि दलित शब्द अपेक्षाकृत उससे नया।

लोककला और साहित्य के आइने में राजा सलहेस

लोकगाथा सलहेस में मौजूद दलितों की मुखर अभिव्यक्ति तिरोहित दिखती है, अब ‘समाज’ को जागृत करने का उत्स नहीं दिखता और चित्रों में उनका निरूपण महज आलंकारिक है।

लोकगाथा सीरीज: सोरठी-बृजभार का कथानक

लोकगाथा सोरठी बृजभार संपूर्ण बिहार और अवध क्षेत्र में लोकप्रिय है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत 1100 – 1325 ई. के बीच हुई जब नाथपंथ का प्रभाव पूरे क्षेत्र में प्रबल था।

लोकगाथा राजा सलहेस की सामाजिक प्रसंगिकता

लोकगाथा राजा सलहेस न केवल एक दलित-शोषित समाज की वास्तविकताओं व अपेक्षाओं की गाथा है, वह उनकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक टकराहटों की भी गाथा है।

नैहर, न्यौछावर और नागराज: लोकगाथा बिहुला-विषहरी की उपकथा – दो

‘बिहुला-विषहरी’ का काल संस्कृतियों के विलयन का काल था। अंग क्षेत्र में वह कितना सहज था, उसकी अभिव्यक्ति इस लोककथा में है: मीरा झा, अंगिका साहित्यकार, भागलपुर।

नाग से विवाह: लोकगाथा बिहुला-विषहरी की उपकथा – एक

‘नाग से विवाह’ लोकगाथा बिहुला-विषहरी की अनेक उपकथाओं में से एक है। इसमें नागों का जनजातीय स्वरूप और उसका प्राकृतिक स्वभाव, दोनों साथ प्रत्यक्ष होता है।

लोकगाथा हिरनी-बिरनी और पोसन सिंह : कथानक

हिरनी-बिरनी लोकगाथा में ऊंची जाति का पोसन सिंह नटिन बहनों से शादी करता है। विवाह का प्रसंग जनमना जाति व्यवस्था में विवाह पर लगे स्वजातीय सीमा बंधन को चुनौती देता है।

लोकगाथा: रेशमा – चूहड़मल (कथानक)

रेशमा चूहड़मल की लोकगाथा सामंती व्यवस्थाओं के खिलाफ प्रतिरोध की गाथा है जिसमें सामाजिक वर्जनाओं के खिलाफ विद्रोह की प्रवृत्ति अत्यंत मुखरता से मिलती है।

लोकगाथा: बोहुरा गोढ़नी उर्फ नेटुआ दयाल सिंह

बोहुरा गोढ़नी शर्त रखती है कि वह बेटी अमरौती की शादी विश्वंभर के बेटे नेटुआ दयाल सिंह से तभी करेगी जब भीमल सिंह कमला नदी की धार को बखरी बाजार तक आने देंगे।

लोकगाथा दीना-भद्री का कथानक: भाग-2

दीना-भद्री लोकगाथा मुसहर समाज के जीवन की गुत्थम-गुत्थी, जय-पराजय एवं उससे संचित अनुभवों की आवाजाही के बीच पनपते सपनों एवं आकांक्षाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति है।

लोकगाथा दीना-भद्री का कथानक: भाग-1

दीना-भद्री लोकगाथा में दलित समुदाय के शोषण और उत्पीड़न की घटनाओं का केन्द्रीकरण है, उनके जीवन के अन्तर्विरोधों और संघर्षों का मानवीकरण है – हसन इमाम, संस्कृतिकर्मी, बिहार

बिहार: हाशिये पर सलहेस लोककलाकार

लोकगाथा राजा सलहेस ने बिहार में एक संस्कृति को जन्म दिया जो समतामूलक समाज की मांग करता है। यह साधनसंपन्न सवर्ण समाज के लिए पचा पाना आसान नहीं है।

लोकगाथा राजा सलहेस की साहित्यिक विवेचना

राजा सलहेस की महागाथा संपूर्ण शूद्रों की महागाथा है जिसमें लोकगाथा की सभी विशेषताएं परिलक्षित हैं। इसमें दलितों और सर्वहारा वर्ग की वर्गीय चेतना का मानवीकरण मिलता है।

बिहार के लोकगीतों की स्वर-कोकिला: पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी

विंध्यवासिनी देवी को ‘’बिहार कोकिला’’ भी कहा जाता है जिन्होंने न केवल बिहार के लोकगीतों को अपनी आवाज दी बल्कि उनका संकलन और विस्तार दोनों किया।

पानी पर चलना: लोककथा

व्यवस्थाएं, अपने पक्ष में षडयंत्र रचती हैं, गठजोड़ करती हैंं और मोहरची उस पर मुहर लगाता है। उसी व्यवस्था के चरित्रों को उजागर करती यह लोककथा आप सबके समक्ष प्रस्तुत है।

प्रतीकों की लड़ाई का परिणाम हैं गोदना चित्र: शिवन पासवान

आज गोदना कला में अनेक युवा कलाकार बढ़िया चित्र बना रहे हैं, लेकिन उसमें कोमलता का भाव गायब है। वे कमाई करने वाली मशीन बनते जा रहे हैं।

लोकगाथा राजा सलहेस: मिथिलांचल क्षेत्र

राजा सलहेस, बिहार की लोकगाथाओं में सबसे लोकप्रिय है। उनकी स्वीकार्यता सर्वजातीय समाज में है। इस लोकगाथा में अनेक अंतर्जातीय विवाह हैं। विवाहों के दौरान तमाम संघर्ष, जादू-टोना और दाव-पेंच दर्शकों को खासा रोमांचित करता है।

अथ गीत राजा सलहेसक: जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन

डॉ. ग्रियर्सन ने 1881 में इंट्रोडक्शन टू द मैथिली लिटरेचर ऑफ नॉर्थ बिहार, क्रिस्टोमैथी एंड वोकैबुलरी पुस्तक लिखी, जिसमें पहली बार राजा सलहेस की चर्चा मिलती है।