बिहार के चर्चित मूर्तिकार रजत घोष अपनी कलाकृतियों के माध्यम से एक अलग ही पहचान रखते हैं। कॉलेज के दिनों में लोक कलाओं के प्रति उनके भीतर जो अनुराग पैदा हुआ, उसने न सिर्फ रजत घोष की कला को एक नई धार दी, बल्कि उसने उन्हें बिहार के समसामयिक लोकमूर्तिकरों के बीच मूर्धन्य कलाकार बना दिया।
रजत घोष का जन्म 1956 में पटना के भिखना पहाड़ी इलाके में हुआ। उनके पिता मनोरंजन घोष अपने समय के बहुआयामी व्यक्तित्व थे। वे फोटोग्राफी तकनीक और उसें प्रयोगों के विशेषज्ञ माने जाते थे। घर में फोटोग्राफी का माहौल मिलाने से रजत घोष की रुचि स्वाभाविक रूप से फोटोग्राफी में बढ़ी, लेकिन जल्दी ही उनका ध्यान मूर्तिकला की तरफ आकृष्ट होने लगा।
अपनी इस कलात्मक झुकाव पर सान चढ़ाने के लिए उन्होंने पटना आर्ट कॉलेज में दाखिला लिया। पाण्डेय सुरेंद्र के सानिध्य में उन्होंने मूर्तिकला की पढ़ाई की। तब पटना आर्ट कॉलेज का नाम राजकीय कला एवं शिल्प विद्यालय था। इसके पश्चात जल्दी रजत घोष स्थानीय कलाकारों के बीच चर्चित हो गये। 1978 में पटना आर्ट कॉलेज से पास करने के बाद रजत घोष लखनऊ आर्ट कॉलेज पहुंचे और वहां भी अपनी प्रतिभा और प्रयोगों से कला-गुरुओं एवं मर्मज्ञों का ध्यान आकृष्ट किया।

मूर्तिकला और टेराकोटा में उनके विविध प्रयोगों के लिए रजत घोष को 1985 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उससे एक वर्ष पूर्व, 1984 उन्हें ललित कला अकादमी, दिल्ली से रिसर्च स्कॉलरशिप मिली थी। इस स्कॉलरशिप के दौरान उन्होंने बिहार के लोकनायकों एवं लोकदेवताओं पर गहन अध्ययन किये और उनकी मूर्तिकला लोक और उसकी प्रवृत्तियों की तरफ तेजी से उन्मुख होती चली गई।
तब से रजत घोष निरंतर लोकदेवताओं-लोकदेवियों एवं लोक विषयों को अपनी मूर्तिकला में स्थान देते आए हैं। अपनी कलात्मक अभिव्यक्तियों के लिए उन्होंने विविध माध्यमों का उपयोग किया है जिनमें पत्थर, लोहा, स्टील, कांसा, मिट्टी आदि शामिल है। विविध धातुओं का संयोजन भी उनकी कला में एक विशेषता के तौर पर प्रत्यक्ष होता है।
रजत घोष की कलाकृतियां त्रैवार्सिकी-द्विवार्षिकी, एशियन आर्ट बिनाले और बोधगया बिनाले समेत देश विदेश की अनेक कला प्रदर्शियों का हिस्सा रही हैं और राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, दिल्ली, भारत भवन, भोपाल, बिहार संग्रहालय, पटना और उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान पटना समेत दुनिया के विविध कला संग्रहालयों में संग्रहित हैं।
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