बिहुला-विषहरी का मिथक और 90 के दशक में मंजूषा कला

बिहार की मंजूषा चित्रकला पर यह आलेख वरिष्ठ चित्रकार शेखर ने 1991 में लिखा था। यह आलेख इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि यह वर्तमान मंजूषा कला को देखने की नयी दृष्टि देता है। पढ़िये –

“समय के साथ बदलेगी मंजूषा कला, लेकिन शैलीगत छेड़छाड़ से बचें”

“जो गतिशीलता का विरोधी है, परिवर्त्तन का विरोधी है, वह मृत्यु का पक्षधर है, जड़ता का समर्थक है। परिवर्त्तन चाहे जितना हो, उसे देखते ही लगना चाहिए कि यह मंजूषा शैली ही है।”