लखनऊ कला महाविद्यालय में प्रिंट-मेकिंग के प्रारंभिक दिनों में छात्रों के बीच इस माध्यम के प्रति जिज्ञासा उन्हें हतोत्साहित करने के उपरांत भी बढ़ती गई। अनेक छात्रों में तो इस माध्यम को लेकर एक प्रकार से जुनून ही सवार हो गया था। मनोहर लाल उन जुनूनी छात्रों के एक प्रकार से अग्रज रहे।
थोड़ा शर्मीला-सा और मितभाषी एक छात्र मेरे पास आता है और प्रिंट-मेकिंग में पोस्ट डिप्लोमा करने की इच्छा व्यक्त करता है। पहले तो मुझे कुछ अजीब-सा लगा कि कमर्शियल आर्ट का डिप्लोमा करनेवाला यह छात्र प्रिंट-मेकिंग में क्या काम कर पायेगा। मैंने कहा भी कि भाई प्रिंट-मेकिंग इलस्ट्रेशन नहीं है। एडवरटाइजिंग एजेन्सी को ज्वाइन करना तुम्हारे लिये श्रेयकर होगा
अतीत के झरोखे से कुछ स्मृतियां
असद अली साहब
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सन् 1975 – 80 के मध्य
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