स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी मंजूषा चित्रकला की सबसे ख्यातिलब्ध चित्रकार हैं। मंजूषा कला लोकगाथा बिहुला विषहरी पर आधारित बिहार के भागलपुर क्षेत्र की लोक कला है। 1980 के दशक में सरकारी प्रयासों से यह चित्रकला प्रकाश में आयी, जिसमें चक्रवर्ती देवी का महत्वपूर्ण योगदान था।
चक्रवर्ती देवी का जन्म पश्चिम बंगाल के अंडाल स्थित अहमदाबाद में हुआ था। उनकी शादी नाथनगर चौक के समीप रामलाल मालाकार से हुई थी। असमय पति के गुजरने के बाद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मंजूषा कला के प्रति इस तरह से समर्पित हुईं कि आखिरी सांस तक मंजूषा चित्रों को गढ़ती रहीं। शुरुआती दिनों में चक्रवर्ती देवी मिट्टी के घड़ों पर चित्रकारी करती थीं। बाद में मंजूषा पर चित्रकारी शुरू की। अपने चित्रों के लिए वो स्वयं फूलों एवं पत्तियों से प्राकृतिक रंग तैयार करती थीं, बांस की कूची बनाती थीं जिस बाद में उन्होंने रूई का फाहा बांध कर रंग भरने लग थीं।
1978 में चक्रवर्ती देवी की मुलाकात स्थानीय कलाकार, डिजाइनर और साहित्यकार ज्योतिष चंद्र शर्मा से हुई, जो उनकी कला से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने चक्रवर्ती देवी को कागज पर चित्रकारी के लिए प्रेरित किया और उसके लिए सात ड्रॉइंग पेपर भी दिये। इस तरह मंजूषा चित्रकला कागज पर बननी शुरू हुई। उन्होंने अपने आसपास की अनेक महिलाओं को भी मंजूषा चित्र बनाने के प्रेरित किया जिनमें निर्मला देवी महत्वपूर् हैं। मंजूषा गुरु मनोज पंडित ने भी चित्रकरी निर्मला देवी और और चक्रवर्ती देवी के सानिध्य में ही सीखी।
चक्रवर्ती देवी द्वारा बनाये अनेक चित्र निजी संकलनों में, ललित कला अकादमी, कोलकाता और ईस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर में सुरक्षित हैं। 2008 में चक्रवर्ती देवी ने वैशाली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव में अपनी कला का आखिरी बार प्रदर्शन किया। वहां उनकी तबीयत बिगड़ी और 9 सितंबर 2008 को उनका देहांत हो गया। 2013-14 में बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग ने मरनोपरांत उन्हें बिहार कला सम्मान से सम्मानित किया।
बिहुला-विषहरी लोकगाथा में लहसन माली बिहुला की प्रेरणा से मंजूषा पर चित्र रचता है, उन चित्रों को पहचान चक्रवर्ती देवी मिलती है। उनसे पूर्व किसी मंजूषा चित्रकार का नाम ज्ञात नहीं है। मंजूषा कला में उनके योगदान की वजह से ही मंजूषा चित्रकारों के बीच स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है।