विश्व विरासत दिवस: फिल्मों के जरिए कला की बात

फोकार्टोपीडिया एजुकेशन के तहत एक-दिनी उत्सव में फिल्म ‘नैना जोगिन, द एसिटिक आई’ ‘सामा इन द फॉरेस्ट’ और ‘द वन इयर्ड एलीफैंट फ्रॉम हजारीबाग’ की स्क्रीनिंग की गयी।

पटना कलम के बाद : बिहार की कला

“पटना कलम के बाद: बिहार की कला (भाग-1)”

1790 से लेकर अबतक बिहार में चाक्षुष कला की यात्रा कैसी रही है, किन रास्तों से गुजरी है, इस पर एक विहंगम दृष्टि डालती है “पटना कलम के बाद: बिहार की कला” पुस्तक।

अंगिका लोकसाहित्य और मंजूषा चित्रकला

पुस्तक अंगिका लोकसाहित्य, उसके व्याकरण एवं मंजूषा चित्रकला के विस्तार, वर्तमान और उसके भविष्य के प्रति पर डॉ. अमरेंद्र की विहंगम दृष्टि से साक्षात्कार कराती है।

जब पं. जसराज क्लीन बोल्ड हो गये…विष्णु कुटी, लखनऊ-1980 के आसपास

हालांकि पंडित जसराज पहली ही गेंद पर आउट हो गये और फिर एक बाउंड्री लगायी, संगीत सम्राट ने कहा, क्रिकेट भी एक अच्छा विकल्प हो सकती थी।

मनोहर लाल भुगड़ा: प्रिंट-मेकिंग की जटिलताओं से जूझने वाला एक जुनूनी

लखनऊ का एक ऐसा प्रिंट-मेकर जिसमें प्रिंट-मेकिंग की तकनीकी जटिलताओं से जूझने का जुनून था और अपनी एक अलग पहचान बनायी।

पद्मश्री प्रोफेसर श्याम शर्मा : एक संस्मरण, लखनऊ-1966

श्याम प्रिंट-मेकिंग में पोस्ट डिप्लोमा करना चाहते थे। मुझे लगा, कमर्शियल आर्ट का डिप्लोमा करनेवाला प्रिंट-मेकिंग में काम कर पायेगा ?

स्मृतियों में शेष एक यायावर: मूर्तिकार नारायण कुलकर्णी

नारायण एक कर्मठ और सृजनशील मूर्तिकार थे, छात्रों के प्रति सहज और मित्रवत। लेकिन, कहावत है ‘अच्छा है पर बहुत अच्छा भी ठीक नहीं‘।

पुण्यतिथि विशेष: यूपी में कला आंदोलन के अग्रणी कलाकार आ. मदन लाल नागर​

1923 – 1984 | एक सुसंस्कृत परिवार से आये मदनलाल नागर प्रगतिशील विचारधारा से प्रेरित थे। लकीर पर चलते रहना उन्हें स्वीकार नहीं था।

हर खूबसूरत तस्वीर कला नहीं : दयानिता सिंह

किसी तस्वीर को इस वजह से कला नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह खूबसूरत है, ठीक वैसे ही जैसे हर खूबसूरत पंक्तियों का क्रम कविता नहीं बन जाती है।