“पटना कलम के बाद: बिहार की कला (भाग-1)”
1790 से लेकर अबतक बिहार में चाक्षुष कला की यात्रा कैसी रही है, किन रास्तों से गुजरी है, इस पर एक विहंगम दृष्टि डालती है “पटना कलम के बाद: बिहार की कला” पुस्तक।
1790 से लेकर अबतक बिहार में चाक्षुष कला की यात्रा कैसी रही है, किन रास्तों से गुजरी है, इस पर एक विहंगम दृष्टि डालती है “पटना कलम के बाद: बिहार की कला” पुस्तक।
पुस्तक अंगिका लोकसाहित्य, उसके व्याकरण एवं मंजूषा चित्रकला के विस्तार, वर्तमान और उसके भविष्य के प्रति पर डॉ. अमरेंद्र की विहंगम दृष्टि से साक्षात्कार कराती है।
राजा सलहेस की महागाथा संपूर्ण शूद्रों की महागाथा है जिसमें लोकगाथा की सभी विशेषताएं परिलक्षित हैं। इसमें दलितों और सर्वहारा वर्ग की वर्गीय चेतना का मानवीकरण मिलता है।
फणीश्वरनाथ रेणु ने कई चर्चित कहानियां लिखी हैं। ‘ठेंस’ उनमें से एक है। यह कहानी एक छोटे से गांव के छोटी जाती के उस बड़े हृदय वाले कारीगर की है जो अंत में आपके हृदय में अपनी छाप छोड़ जाता है।
आज हिन्दी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्मदिन है और उनके जन्मशती वर्ष का प्रवेश भी। रेणु जी का जन्म बिहार के अररिया जिले में फारबिसगंज के पास के गांव औराही हिंगना में 4 मार्च 1921 को हुआ था।
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