Angika Loksahitya aur Manjusha
Lokkala
Writer: Dr. Amrendra
Presentation: Vasundhara
Publisher: Sameeksha Prakashan, Muzaffarpur, Bihar
Price: Rs. 250
‘अंगिका लोकसाहित्य और मंजूषा लोककला’ पुस्तक भागलपुर, बिहार के चर्चित साहित्यकार डॉ. अमरेंद्र द्वारा लिखित विविध आलेखों और उनकी लिखित पुस्तकों से चयनित आलेखों का संग्रह है। पुस्तक में आलेख डॉ. सुरेश गौतम और डॉ. वीणा गौतम द्वारा संपादित पुस्तक ‘भारतीय साहित्य कोश – खंड-1’, और ‘भारतीय लोक साहित्य कोश – खंड-2’, चंद्रप्रकाश जगप्रिय द्वारा संपादित पुस्तक ‘अंगप्रदेश की लोककला: मंजूषा’ एवं अन्य पुस्तकों एक पत्र-पत्रिकाओं से आते हैं। यह पुस्तक अपने संक्षिप्त स्वरूप में अंगिका लोकसाहित्य एवं उसके व्याकरण पर डॉ. अमरेंद्र की विहंगम दृष्टि से साक्षात्कार कराती है, साथ ही, मंजूषा कला के विस्तार, वर्तमान और उसके भविष्य के प्रति उनकी चिंताओं को भी रेखांकित करती है।
पुरोवाक्;
प्रस्तुत पुस्तक मेरे पिता डॉ. अमरेंद्र के लेखों का संग्रह है। इसका प्रथम अध्याय 2008 ई. में डॉ. सुरेश गौतम और डॉ. वीणा गौतम के संपादन में प्रकाशित ‘भारतीय साहित्य कोश – खंड-1’ से साभार है, लेकिन संपूर्ण नहीं, बस लेख का पूर्व भाग। शेष को इसलिए छोड़ दिया गया है कि वह ‘भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण’ (बिहार की भाषाएं), जिसके मुख्य संपादक गणेश देवी और खंड संपादक विद्या सिंह चौहान हैं, और जो 2017 ई. में ओरियन्ट ब्लैकस्वान प्रा. लि. हैदराबाद से प्रकाशित है, में भी प्रकाशित है। द्वितीय अध्याय का ‘अंगिका लोक साहित्य’ भी संपादक डॉ. सुरेश गौतम और डॉ. वीणा गौतम के संपादन में प्रकाशित ‘भारतीय लोक साहित्य कोश – खंड-2’ से साभार है। दोनों ही ग्रंथ संजय प्रकाशन, दरियागंज दिल्ली से प्रकाशित हैं। द्वितीय अध्याय में कुछ अंतर है तो यह कि लोकगाथा वाला अंश वह है जो किसी अखबार में बाद में प्रकाशित हुआ था। दोनों में अंतर बस यही है कि बाद में पिता जी ने आलोचक नलिन विलोचन शर्मा के कथन का बीच-बीच में उल्लेख कर दिया है।
बाकी अध्याय तीन में संकलित लेख और साक्षात्कार चंद्रप्रकाश जगप्रिय के संपादन में प्रकाशित ‘अंगप्रदेश की लोककला: मंजूषा’ से साभार है। वैसे मंजूषा पर केंद्रित लेख पूर्व में ‘संस्कृति’ पत्रिका (दिल्ली) में भी प्रकाशित है जैसे कि भारतीय साहित्य कोश में जो अंगिका व्याकरण का भाग है, वह पूर्व में राजीव कुमार सिन्हा और ओम प्रकाश पांडेय के संपादन में इंडियन बुक मार्केट, भागलपुर से 2007 में प्रकाशित ‘अंग संस्कृति: विविध आयाम’ में प्रकाशित अंश ही है।
इन लेखों को पुस्तक रूप देने के पीछे मेरा उद्देश्य यही रहा है कि पिता जी के बिखरे लेखों को एक जगह एकत्रित करना। यह काम मैं भविष्य में करती रहूंगी, क्योंकि यह सब अब उनसे संभव भी नहीं। इस पुस्तक का आगवण मुझसे बड़े भाई अभिनन्दन कुमार ने तैयार किया है और मंजूषा चित्र मेरे सबसे बड़े भाई कुमार संभव के बनाए हुए हैं। प्रेरणा में पूरा परिवार रहा है। इसी से यह पुस्तक एक साहित्यकार परिवार की इच्छा का साकार रूप है। कमियां भी होंगी। कारण है – प्रूफ एवं संपादन का काम इतना आसान नहीं है, लेकिन यही सोच कर काम छोड़ भी नहीं सकती थी।
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वसुंधरा