पत्थरकट्टी: पाषाण शिल्प, परंपरागत डिजाइन और कच्चा माल के स्रोत

1940-70 के दशक में पत्थरकट्टी के शिल्पी क्या तराश रहे थे, उनके डिजाइन क्या थे, जरूरत का कच्चा माल कहां से आता था और उपकरण क्या थे, डालते हैं उन पर एक नजर –

पत्थरकट्टी,1940–1970: परंपरा और परिस्थितियों के बीच फंसा पाषाण शिल्प

पत्थरकट्टी का इतिहास भले ही समृद्ध दिखता हो, 1940 के दशक तक आते-आते कलाकारों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी थी। वो किसी भी हाल में जयपुर लौट जाना चाहते थे।

पाषाण शिल्पियों का विशिष्ट गांव, पत्थरकट्टी: संक्षिप्त इतिहास और सामाजिक तानाबाना

बिहार में एक विशिष्ट गांव है पत्थरकट्टी, जहां बेजान पत्थरों में जान फूंकते हैं पाषाण शिल्पी। इसे अहिल्याबाई होल्कर ने बसाया था। उसके इतिहास और सामाजिक ताने-बाने पर एक नजर –

पटना: दीदारगंज की भव्य चामरधारिणी यक्षी

पटना के दीदारगंज में मिली एक फीट साढ़े सात इंच की चौकी पर बैठी चुनार के बलुआ पत्थरों से बनी पांच फ़ीट दो इंच लंबी यक्षी की मूर्ति दर्पण की तरह अविश्वसनीय रूप से चमकदार है।

फिरंगी लाल गुप्ता: बिहार के एक अनोखे संगतराश

“हाथी ऐश्वर्य लाता है। मैं साक्षी हूं। वह मार्बल का ही क्यों न हो। अन्यथा किसने सोचा था कि जिसके पास खिलौने खरीदने भर के पैसे नहीं थे, वह देश-विदेश को अपनी कला दिखाएगा।”