Verrier Elwin ’s Collection and Definition of Adivasi Art
The article returns to the first book fully devoted to The Tribal Art of Middle India. Published in 1951, by the missionary turned ethnologist Verrier Elwin.
The article returns to the first book fully devoted to The Tribal Art of Middle India. Published in 1951, by the missionary turned ethnologist Verrier Elwin.
Adivasi art has the capacity to express Adivasi myths, songs and culture in order to re-enchant the real world even if the latter is full of problems.
The study investigates the historical traditions of Maithili art in Northern India, and its connections to Tantric art.
बिहार की मंजूषा चित्रकला पर यह आलेख वरिष्ठ चित्रकार शेखर ने 1991 में लिखा था। यह आलेख इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि यह वर्तमान मंजूषा कला को देखने की नयी दृष्टि देता है। पढ़िये –
“In this article I attempt to unravel a mystery. The mystery is semiotic; it is about layers of meanings; it is about how meanings come into existence…”
Dalit art evolved as a mode of resistance and protest. It tires to historically trace the origin and the seriousness of caste discrimination.
1940-70 के दशक में पत्थरकट्टी के शिल्पी क्या तराश रहे थे, उनके डिजाइन क्या थे, जरूरत का कच्चा माल कहां से आता था और उपकरण क्या थे, डालते हैं उन पर एक नजर –
पत्थरकट्टी का इतिहास भले ही समृद्ध दिखता हो, 1940 के दशक तक आते-आते कलाकारों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी थी। वो किसी भी हाल में जयपुर लौट जाना चाहते थे।
बिहार में एक विशिष्ट गांव है पत्थरकट्टी, जहां बेजान पत्थरों में जान फूंकते हैं पाषाण शिल्पी। इसे अहिल्याबाई होल्कर ने बसाया था। उसके इतिहास और सामाजिक ताने-बाने पर एक नजर –
आजादी के बाद पचास के दशक में बिहार के समकालीन चित्रकला में आधुनिकता का प्रवेश और उसके विकास के उत्प्रेरक के रूप में बी.एन. श्रीवास्तव का नाम अग्रगणी है।
Khovar and Sohrai paintings are considered auspicious symbols related to fertility and prosperity being painted on the walls.
This article traces the historical journey of Mithila painting, that of the painting of walls, floor-spaces on the medium of paper in North Bihar.
पटना कलम के चित्र मुख्यत: बाजार की मांग और मूल्य के अनुरूप थे। वह इस बात पर निर्भर करता था कि चित्रों के विषय क्या हैं और उनका खरीदार कौन है।
पटना के दीदारगंज में मिली एक फीट साढ़े सात इंच की चौकी पर बैठी चुनार के बलुआ पत्थरों से बनी पांच फ़ीट दो इंच लंबी यक्षी की मूर्ति दर्पण की तरह अविश्वसनीय रूप से चमकदार है।
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