Meet the Masters: Leela Devi, Mithila painting
Eminent artist Leela Devi learned Mithila painting from Late Smt. Ganga Devi who was a pioneer of traditional Mithila paintings.
Eminent artist Leela Devi learned Mithila painting from Late Smt. Ganga Devi who was a pioneer of traditional Mithila paintings.
Bimla Dutta is one of the senior most Mithila painters in Madhubani, Bihar. She learnt painting from her mother, elder sister.
What makes Pushpa special is not only contemporary ideas and treatment, but also, an artistic intensity, an aesthetic ideal that is truly her own.
Khovar is a marriage mural art of the tribaland Scheduled castes communities of Hazaribagh, found throughout the plateau.
The word ‘Sohrai’ is distinguished to mark the first domestication of cattle and the birth of agriculture in Jharkhand.
The study investigates the historical traditions of Maithili art in Northern India, and its connections to Tantric art.
The monograph published by Senior artist Shekhar in 1998, is important to learn about Manjusha art in Chakravarti Devi’s time frame. Find the monograph;
बिहार की मंजूषा चित्रकला पर यह आलेख वरिष्ठ चित्रकार शेखर ने 1991 में लिखा था। यह आलेख इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि यह वर्तमान मंजूषा कला को देखने की नयी दृष्टि देता है। पढ़िये –
“In this article I attempt to unravel a mystery. The mystery is semiotic; it is about layers of meanings; it is about how meanings come into existence…”
Dalit art evolved as a mode of resistance and protest. It tires to historically trace the origin and the seriousness of caste discrimination.
लोक’ और ‘दलित’ न केवल अलग-अलग शब्द हैं बल्कि उनके प्रयोगों के संदर्भ भी अलग-अलग हैं। ‘लोक’ अत्यंत ही प्राचीन शब्द है जबकि दलित शब्द अपेक्षाकृत उससे नया।
Khovar and Sohrai paintings are considered auspicious symbols related to fertility and prosperity being painted on the walls.
This article traces the historical journey of Mithila painting, that of the painting of walls, floor-spaces on the medium of paper in North Bihar.
भोजपुरी अंचल के सामाजिक जीवन के संस्कार, उसमें निहित आंतरिक जीवन दर्शन तथा आदर्श मूल्यों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से वहां की कलाओं पर विद्यमान हैं।
चाहे सत्ता-संस्कृति हो या बाजारवादी संस्कृति, दोनों की कोशिश लोक कला को परंपरा, धर्म व रूढ़ी की बेड़ियों में जकड़ कर एक दरबारी, रूढ़िवादी व सजावटी कला बना देने की रही है।
कोहबर की परंपरागत थाति को पूर्वांचल के कलाकारों ने अपूर्व संवेदनशीलता एवं सृजनात्मक सामर्थ्य से अनुदित कर सहेजा है जिसे समझने के लिए सूक्ष्म दृष्टि की आवश्यकता है।
This article traces the documentation of ritual wall paintings by Maithil Brahmans and Kayasthas through the collecting practices of private individuals, libraries and others.
The historiography of Maithil Paintings of 50 yrs. after independence (1947 to 1997) – a phase marked by its discovery, commercialisation and promotion as a fine art.
गोदना कला में मोटिव्स के साथ प्रयोग की प्रवृति उर्मिला देवी में चानो देवी से आती है और वह प्रवृति इतनी तेज है कि लोककलाओं की परिधि को अक्सर तोड़ती नजर आती है।
गोदना कला जिन कलाकारों की वजह से चर्चा में आई, उनमें एक हैं उत्तम। उन्होंने चानो देवी से गोदना कला सीखी और ऐसा सम्मोहक ‘ब्रह्माण्ड’ रच डाला जिससे निकलना आसान नहीं है।
अवरोध अवसर भी हो सकते हैं, मिथिला कला में शांति देवी की कला यात्रा इस बात को साबित करती है। जब-जब अवरोध सामने आए, शांति देवी उन्हें अवसर में बदलती गयीं।
मिथिला की चित्र परंपराओं में गोदना चित्रकला एक अस्वाभाविक घटना थी। चानो ने अपनी सूझ-बूझ से उसे न केवल ‘स्वाभाविक’ बनाया, बल्कि एक नयी कलाधारा की शुरुआत भी की।
मंजूषा कला चक्रवर्ती देवी की वजह से चर्चा में आयी, लेकिन उसे ऊंचाई पर पहुंचाया निर्मला देवी ने। वह आज भी युवा कलाकारों को नि:शुल्क मंजूषा कला सिखाती हैं।
भारत में परंपरागत रूप से कला राज्याश्रय या मठों-मंदिरों के संरक्षण में सदियों से फली-फूली। लेकिन वह बाजार में आयी कालीघाट से। इसे कला बाजार की शुरुआत माना जाता है।
Tattooing is an age-old tradition of India in general and tribal societies in particular. In Northern and Central India, it is popularly known as ‘Godna.’
परंपरागत मिथिला चित्रकला की पुरोधा कलाकारों में बिमला दत्त का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वह मुख्यत: लाइन शैली में चित्रण करती हैं और चित्रों में परंपरागत विषयों को महत्व देती हैं।
भारत सांस्कृतिक विरासतों के साथ-साथ सांस्कृतिक बहुलताओं का भी देश है, जिनके बीच सहअस्तित्व की भावना सदियों से विद्यमान रही है। लोककलाएं उसका प्रमाण हैं।
Nishad Avari shares a note on Sita Devi, one of the most important and celebrated Mithila artists.
Manjusha art is believed to be the only art form in the history of the art forms in India which has a sequential representation of the story and is displayed in a series.
Bihula-Bisahari is one of the folklore traditions of Bihar, practiced in the Bhagalpur area. Now-a-days though the oral songs are not as popular, an effort is being made to revive them.
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