उर्मिला देवी पासवान: लोककलाओं की परिधि के पार एक कलाकार

Godna painting (one part) by Urmila Devi Paswan, Jitwarpur, Madhubani. Collection: Manisha Jha, New Delhi
Godna painting (one part) by Urmila Devi Paswan, Jitwarpur, Madhubani. Collection: Manisha Jha, New Delhi

अभाव, आवश्यकताएं और अनुकूल समय, इन तीनों के मेल से जितवारपुर का कला समाज समृद्ध हुआ है, विशेषकर दलित कलाकारों का समाज। मिथिला कला जब कागज पर उतर रही थी, तब उस समाज के पास कला से जुड़ी अपनी कोई धार्मिक परंपराएं नहीं थी, धार्मिक ग्रंथ नहीं थे और अवतारवाद व पारलौकिक कथाएं नहीं थीं। इस स्थिति में लोकगाथा राजा सलहेस के नायक राजा सलहेस ने उनके विषयों के अभाव को काफी हद तक भरा और गोदना चित्रकला के केंद्रीय विषय के रूप में उनकी स्थापना हुई।

जितवारपुर के ज्यादातर दलित कलाकार गोदना चित्रों में राजा सलहेस और उससे जुड़े कथानक का निरूपण करते हैं जिनमें आकृतियों की आवृतियां होती थीं। यह आवृतियां रैखिक भी होतीं और वृताकार भी। यह गोदना कला का स्वाभाविक चरित्र है। उन आकृतियों और आवृतियों का संयोजन प्रयोग-मूलक हो सकता है, यह सिद्ध किया चानो देवी और उर्मिला देवी ने। चानो देवी नैसर्गिक प्रतिभाशाली कलाकार थी जिन्हें गोदना कला को कागज पर उतारने का श्रेय दिया जाता है। बाद में उन्होंने अपने चित्रों में विवध प्रयोग किये। उर्मिला देवी ने चानो देवी के सानिध्य में ही गोदना चित्र बनाना सीखा और उसे एक नयी ऊंचाई दी।

खजौली, मधुबनी के गांव दतुआर के एक सामान्य मजदूर परिवार में 21 जुलाई 1950 को उर्मिला देवी का जन्म हुआ। उनके पिता देबु पासवान मजदूरी करते थे और उनकी मां कौशल्या देवी एक आम गृहणी थी। 15 वर्ष की आयु में उर्मिला का विवाह जितवारपुर के बिलट पासवान से हुआ। बिलट भी तब मजदूरी का काम किया करते थे। परिवार विपन्न था। शादी के कुछ वर्ष बाद जब उर्मिला जितवारपुर आयीं, तब उन्होंने रिश्ते में अपनी सास चानो देवी को चित्र बनाते देखा।

धीरे-धीरे उन्हें पता चला कि चित्रों की बिक्री से चानो देवी अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। लिहाजा, उर्मिला देवी ने भी उनके समक्ष चित्रकला सीखने की इच्छा व्यक्त की। चानो देवी ने उनकी इच्छा का मान रखते हुए उन्हें न केवल चित्र बनाना सिखाया, बल्कि तब अपनी समझ के मुताबिक उन लोगों से भी परिचय कराया जो गोदना चित्रों की खरीद-बिक्री से जुड़े थे। उर्मिला देवी प्रतिभाशाली थीं। जल्दी ही उनके चित्रों को भी बाजार मिलने लगा और प्रोत्साहन भी और फिर वह गोदना चित्रों की रचना में ऐसी रमीं कि आजतक बाहर नहीं निकलीं।  

Urmila Devi Paswan, Senior artist, Godna painting, Jitwarpur, Madhubani, Bihar ©folkartopedia

उर्मिला देवी के गोदना चित्रों के केंद्र में राजा सलहेस हैं जिनका चित्रण अलग-अलग संयोजनों में मोतीराम, बुधेश्वर, कारिकन्हा, रेशमा-कुसुमा, दौना-मालिन एवं अन्य गोदना प्रतीकों के साथ मिलता है। अनुपम प्रकृति उनके चित्रों का अलंकरण है। उनकी अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि, मिथिलांचल का आम गृहस्थ जीवन और वहां की पारिस्थितिकी विशेषताएं, समस्याएं भी उनके चित्रों में स्थान पाती हैं। यथा, मजदूरी, कृषि-जीवन, मत्य-पालन, विवाह, बाढ़ की समस्याएं, नाना प्रकार के जीव-जंतु और उनके साथ-साथ हुरार जैसे काल्पनिक जीव भी। उर्मिला देवी के चित्रों में काला रंग प्रधान है, जिससे वह कागज और कैनवस, दोनों पर ही सजीव चित्रण करती हैं।  

चानो देवी का एक चित्र ‘राजा सलहेस का अवतार’ जिसे ‘घोस्ट ऑफ राजा सलहेस’ भी कहा जाता है, काफी लोकप्रिय है। यह विषय एक उन्नत संस्करण की तरह उर्मिला देवी के चित्रों में भी दिखता है। एक ही तरह दिखने वाली काली आकृतियों की आवृतियां एक दूसरे से जुड़कर विविध केंद्रीय संयोजन के साथ राजा सलहेस के अवतरण का रहस्यमयी दृश्य प्रस्तुत करती हैं।

‘ट्री ऑफ लाइफ’ का चित्रण मिथिला के तमाम वरिष्ठ कलाकारों ने किया है और कनिष्ठ कलाकार कर रहे हैं, लेकिन जब उसी विषय का चित्रण उर्मिला देवी करती हैं, तब उसकी जीवतंतता एक अलग ही रूप में प्रत्यक्ष होती है। वहां न केवल रंगों और रेखाओं का गजब का संतुलन दिखता है, बल्कि पत्तियों के संयोजन से पक्षियां इस प्रकार रूपाकार लेती हैं मानो वह एक भरे पूरे वृक्ष पर कलरव कर रही हों।

गोदना कला में मोटिव्स के साथ प्रयोग की प्रवृति चानो देवी से उर्मिला देवी में आती है जिन्होंने पहली बार उन मोटिस्व को वर्गों के दायरे में भी बांधा और उन वर्गों के संयोजन से ऐसे चित्र रचे जो लोककलाओं की परिधि को तोड़ती दिखती हैं। उर्मिला देवी अपनी अवचेतन कलात्मक क्षमता से चानो देवी के प्रयोग की प्रवृति को नयी ऊंचाई पर ले जाती हैं।

यही वजह है कि उनके बनाये चित्रों का संग्रह न केवल भारत में विभिन्न शहरों में है बल्कि विदेशों में भी है और उनके चित्र दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, पुद्दुचेरी के साथ-साथ चीन समेत विदेश के अनेक शहरों में भी प्रदर्शित किये जा चुके हैं। मिथिला कला में उर्मिला देवी के योगदान के लिए उन्हें 1986-87 में राज्य पुरस्कार और 2012 में नेशनल मेरिट सर्टिफिकेट से सम्मानित किया गया है।

उर्मिला देवी जितवारपुर के उत्तरवाड़ी पासवान टोला में रहती हैं और कला साधना करती हैं।  

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