बिहार की चर्चित मिथिला चित्रकार बिमला दत्त का जन्म 26 जून 1941 को मधुबनी, बिहार के काको ग्राम में उचित नारायण दास के परिवार में हुआ। वह अपने माता-पिता की आठ संतानों में से पांचवीं हैं। मिथिला चित्रकला का आरंभिक शिक्षा उन्हें अपनी मां सुरसरी देवी से मिली और बड़ी बहन अन्नपूर्ण देवी के सानिध्य में उनकी कला खूब निखरी। उन्हें बचपन से ही कोहबर और अरिपन लिखने का शौक था और धीरे-धीरे उन्होंने उसमें महारथ हासिल कर ली।
2 दिसंबर 1960 को 19 वर्ष की उम्र में उनका विवाह मधुबनी के जाने-माने समाजसेवी और रांटी के निवासी तांत्रिक रमाप्रसाद दत्त के मंझले बेटे प्रताप नारायण दत्त से हुई। एक वृहद संयुक्त परिवार में अपने दायित्वों के निर्वहन की वजह से बिमला दत्त थोड़े समय तक चित्र लिखने से वंचित रहीं।
मिथिलांचल में जब अकाल पड़ा तब गांवों में सरकारी मदद पहुंचाने की कोशिशों के तहत भास्कर कुलकर्णी मधुबनी पहुंचे और रांटी आये। उन्होंने रांटी में अन्य परिवारों की तरह रमाप्रसाद दत्त परिवार से भी मुलाकात की। भाष्कर कुलकर्णी की प्रेरणा और अपने परिवार की इजाजत से बिमला दत्ता ने दुबारा चित्र लिखना शुरू किया। रांटी की चर्चा तब महासुंदरी देवी, कर्पूरी देवी और गोदावरी दत्त की चित्रकला की वजह से होने लगी थी, जल्दी ही बिमला दत्त ने भी अपनी पहचान बना लीं।
बिमला दत्त मुख्य रूप से लाइन शैली में चित्र बनाती हैं और उनके चित्रों के विषय मूलत: परंपरागत ही रहे हैं। उन्होंने अर्धनारीश्वर, कालिया मर्दन, काली, लक्ष्मी-विष्णु, गौरी-गणेश जैसे विषयों पर चित्र बनाए। उनकी पहली पेंटिंग 1971 में 20 रुपये में बिकी जिसे गौरी मिश्रा के माध्यम ने अमरीकी एंथ्रोपॉलोजिस्ट रेमंड ओवंन्स ने खरीदी थी।
देश-विदेश के कई शहरों में बिमला दत्त के बनाये चित्रों की प्रदर्शनी लगी है। उनके बनाये मिथिला चित्रों को ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट वीक – मधुबनी (1984), क्राफ्ट मेला – शांतिनिकेतन (1985), क्राफ्ट फेस्टिवल – मद्रास (1987), सरोजिनी नायडू ट्रस्ट – हैदराबाद (1990), ग्वालियर मेला – ग्वालियर (1991), झांसी महोत्सव – झांसी (1997), जर्नी ऑफ मिथिला पेंटिंग, विजुअल आर्ट गैलरी – दिल्ली (2007), फोक एंड ट्राइबल आर्ट ऑनलाइन एग्जीबिशन कम ऑक्सन, सैफरन आर्ट (2013), 100 फोक आर्टिस्ट ऑफ बिहार – पटना (2014), मिथिला चित्रकला महोत्सव – पटना (2016) में प्रदर्शित किये गये हैं। 2004 में उनकी एकल चित्र प्रदर्शनी भोपाल में आयोजित की गयी थी।
विदेश में मुख्य रूप से जापान में उन्होंने मिथिला कला को बढ़ावा दिया। मिथिला म्यूजियम, जापान के निमंत्रण पर उन्होंने जापान के अलग-अलग शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। उनके चित्र मिथिला म्यूजियम – जापान, एथनिक आर्ट फाउंडेशन – अमरीका, रेडफोर्ड यूनिवर्सिटी आर्ट म्यूजियम – वर्जीनिया, अमरीका और नेपाल के अनेक कला प्रेमियों एवं संस्थानों के पास संग्रहित हैं।
बिमला दत्त मिथिला चित्रकला के प्रसार-प्रचार के लिए निरंतर प्रयासरत रही हैं। 1990 और 93 में उन्होंने सीसीआरटी के माध्यम से हजारों लोगों को मिथिला चित्रकला का प्रशिक्षण दिया। उससे पूर्व 1986 में भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा संचालित प्रशिक्षण कार्यकर्मों में उन्होंने अनेक लोगों को मिथिला कला सिखायी और 2016 में उन्होंने कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, भुवनेश्वर में ट्रेनिंग कम वर्कशॉप में हिस्सा लिया।
मिथिला कला में उनके योगदान के लिए बिमला दत्त को कर्णश्री पुरस्कार (2019), फ्रैटिनिटी ग्रुप अवार्ड (2018), मास्टर क्राफ्ट वूमन (2017), इंटरनेशनल क्राफ्ट अवार्ड (2017), कर्ण विभूषण अवार्ड (2012), राज्य पुरस्कार – बिहार सरकार (2009-10), चेतना समिति पुरस्कार (2009) और अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद पुरस्कार – नेपाल (2000) से सम्मानित किया गया है।
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