विश्व विरासत दिवस के मौके पर देश की हिन्दी पट्टी में लोककलाओं के दस्तावेजीकरण, संरक्षण और उनके संवर्धन के क्षेत्र में सक्रिय संस्थान फोकार्टोपीडिया ने पटना के उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के सौजन्य से संस्थान-परिसर में लोककला फिल्मों के एकदिनी उत्सव का आयोजन किया। उत्सव का उद्देश्य था, लोककला क्षेत्र में भविष्य तलाश रहे युवा व प्रशिक्षु कलाकारों को कला परंपराओं से अवगत कराना। विगत कुछ दशकों में संभवत: यह पहली कोशिश थी, जब फिल्मों के जरिए कला शिक्षा की बात की गयी हो।
फोकार्टोपीडिया एजुकेशन के तहत आयोजित इस एक-दिनी उत्सव में जिन तीन फिल्मों की स्क्रीनिंग की गयी, उनमें पहली फिल्म थी, ‘नैना जोगिन, द एसिटिक आई’ । 2006 में मुंबई के अंदाज प्रोडक्शन के तहत बनी और प्रवीण कुमार द्वारा निर्देशित यह फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित है। मिथिला चित्रकला का ‘कोहबर’ और उससे जुड़े रीति रिवाज फिल्म का केंद्रीय विषय है जिसमें साथ-साथ कई कलाकारों की कला-यात्रा का संक्षिप्त परिचय भी शामिल किया गया है। फिल्म यह भी बताती है कि तत्कालीन समय में किन परिस्थितियों के बीच कलाकार कला-कर्म कलाएं रच रहे थे।
दूसरी फिल्म ‘सामा इन द फॉरेस्ट’ भी मिथिला की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर बनी है जिसके केंद्र में है साम्ब और सामा की कहानी। लोक जीवन में और खासतौर पर महिलाओं के जीवन में लोककथाएं, लोकगाथाएं, लोकनाट्य किस प्रकार गुंथे हैं, उसकी झलक फिल्म में दिखती है। फिल्म देखने से पता चलता है कि किस प्रकार कथाओं-गाथाओं के जरिए महिलाएं अपने समय और समाज के प्रति हमारी समझ को नया आयाम देने की कोशिश कर रही हैं, उसके समक्ष चुनौती प्रस्तुत कर रही हैं और उन्हें अपने अनुरूप बदलने की शक्ति का परिचय करा रही हैं। फिल्म की निर्माता हैं कोरालिन डी. डेविस, निर्देशन कार्लोस गोमेज का है और फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार की है एम.एस. सुमन ने।
इस कड़ी में आखिरी फिल्म ‘द वन इयर्ड एलीफैंट फ्रॉम हजारीबाग’ थी। यह फिल्म कभी बिहार का हिस्सा रहे हजारीबाग जिले और वहां के आदिवासी समाज की धरोहर कोवर-सोहराई कला पर बनी है। यह चित्रकला हजारीबाग और उसके आसपास के क्षेत्र में भित्ति चित्रण के रूप में है, जिसकी पृष्ठभूमि है वहां का ऐतिहासिक रॉक आर्ट। सुजेन गुप्ता के निर्देशन में 2004 में यह फिल्म स्थानीय ट्राइबल वूमन आर्टिस्ट्स कोऑपरेटिव की मदद से बनायी गयी थी। फिल्म को बनाने में पद्मश्री बुल्लू इमाम की महत्ती भूमिका थी जिन्हें कोवर और सोहराई कला को कागज पर लाने का श्रेय जाता है। उत्सव के अंत में दिल्ली के जाने-माने कला लेखक सुमन सिंह ने ‘वर्तमान समय में परंपरागत कलाओं को कैसे देखें’ विषय पर और कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राखी कुमारी ने ‘परंपरागत कलाओं में शोध और वर्तमान संदर्भ’ विषय पर अपने विचार रखे और संस्थान के प्रशिक्षु कलाकारों ने उनसे संवाद स्थापित किया।