Darbhanga House
College Bebisaal Mere Behtareen Saal
Writer: K. Manjari Shrivastava
आपलोगों ने कभी किसी ज़िंदा आदमी की रूह को भटकते सुना है? शायद आपमें से किसी ने नहीं सुना होगा। पर कुछ ज़िन्दा रूहें भी भटकती हैं और ऐसी ही एक रूह है मेरे अन्दर जो भटकती है। पटना के दरभंगा हाउस के खंडहरों में, महलों में जो कभी मेरा कॉलेज हुआ करता था. मेरी रूह कॉलेज के पीछे बहती गंगा के पानी पर चहलकदमी करती है, उनसे लगभग हर रोज़ अठखेलियाँ कर आती है दिनभर में कम से कम एक बार तो ज़रूर।
दरभंगा हाउस जो मेरी ज़िन्दगी में मील का पत्थर बना… दरभंगा हाउस जिसने मेरे ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दिया.. दरभंगा हाउस जिसने मुझे तराशा…दरभंगा हाउस जो मेरे वजूद में आकर हमेशा हमेशा के लिए ठहर गया। आईये आज इस भटकती रूह के साथ आप भी इस महल की सैर कीजिये. १९९८-२००४ तक आपको अपने साथ इस यात्रा पर ले चलती हूँ।
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के. मंजरी श्रीवास्तव जानी-मानी नाट्य विशेषज्ञ एवं कवि हैं। आपने दरभंगा हाउस, पटना से इतिहास में एम.ए. और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया है।