एक समय था जब सूर्य की पहली किरण लखनऊ के कला महाविद्यालय में प्रवेश कर बड़ा मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती थी। कक्षाओं में संतुलित प्रकाश व्यवस्था के लिये उत्तरी दिशा में ही खिड़कियों के खुलने की व्यवस्था की गई थी।अतः प्रातःकाल में ही कुछ क्षणों के लिए सूर्य रश्मियाँ रंग बिखेरने चली आतीं। वह कुछ क्षण ही तो थे जो हमें दिनभर के लिये सृजनात्मक ऊर्जा प्रदान करते थे।
आज मेरे संग्रह में इस चित्र को देखकर उन दिनों का स्मरण हो आया जब सन् 1957 में मैंने एक छात्र के रूप में प्रवेश लिया था। यह गैलरी बहुत बड़ी हुआ करती थी। आये दिन यहां कला प्रदर्शनी, अंतर्राष्ट्रीय फोटोग्राफिक सैलन आदि का आयोजन किया जाता था । मुझे स्मरण है, ख्यात कलाकार गोपाल घोष और बिजौय चक्रवर्ती के चित्रों की प्रदर्शनी इसी गैलरी में आयोजित की गई थी । नित्यानंद महापात्रा जी की श्वेत श्याम उमरख्याम सीरीज़ भी पहली बार इसी गैलरी में देखने को मिली।
सन् 1960 में गोमती नदी की बाढ़ के प्रलयंकारी प्रभाव ने इस गैलरी के अस्तित्व पर भी प्रभाव डाला। साथ ही सामयिक आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए यह छोटी होती चली गई। इस चित्र की सूर्य रश्मियाँ मुझे वह दिन याद दिला रही हैं जब यह गैलरी कला मंहाविद्यालय की ही नहीं, समस्त लखनऊ की कला गतिविधियों का केन्द्र हुआ करती थी। जिसका मैं प्रत्यक्षदर्शी रहा था।
कितना अच्छा हो कि इस गैलरी के एतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इसका जीर्णोद्धार कर वास्तविक स्वरूप में ले आया जाये। वह सूर्य रश्मियाँ आज भी अपना रंग बिखेर रही हैं बस हमें शायद उनकी उपस्थिति का एहसास नहीं हो पा रहा है।
Prof. Jai Krishna Agarwal
Former Principal I College of Arts and Crafts, University of Lucknow,
Lucknow, UP
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Regarded as one of the major Indian printmakers of post independent era. Widely travelled, he has exhibited his creations globally, associated with numerous social, cultural and
academic institutions.