Prof. Jai Krishna Agarwal
Former Principal I College of Arts and Crafts, University of Lucknow,
Lucknow, UP
Blog
Regarded as one of the major Indian printmakers of post independent era. Widely travelled, he has exhibited his creations globally, associated with numerous social, cultural and
academic institutions.
एक यायावर ही तो था मूर्तिकार नारायण कुलकर्णी जो कब आया और कब चला गया पता ही नहीं चला। अब तो उसे भुलाया भी जा चुका है। किन्तु, मेरी स्मृतियों में वह आज भी बसा है। कल ही तो दिल्ली में लिया गया यह फोटो हाथ लगा। इसमें शांति दवे और नारायण कुलकर्णी जो उन दिनों माल्चा मार्ग स्थित केन्द्रीय ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा स्थापिता आर्टिस्ट स्टूडियोज़ में कार्य कर रहे थे, साथ में मैं भी खड़ा हूं।
नारायण कुलकर्णी से पहली बार मैं सन् 1965 में वडोदरा में मिला था। एक अत्यंत कर्मठ, सृजनशील और उत्साही मूर्तिकार था। जल्दी ही हम दोनों में मित्रता हो गई। वास्तव में कुछ समय पूर्व ही पंवार साहब बडोदरा आये थे और उनसे श्री शांखो चौधरी ने कुलकर्णी की प्रशंसा की थी। कुछ सम्भावना कुलकर्णी के लखनऊ कला महाविद्यालय में नियुक्त होने की बन रही थी। मुझे जानकर प्रसन्नता हुई कि एक अच्छा कलाकार और मित्र हमारे बीच और बढ़ जायगा। अंततः सातवें दशक के उत्तरार्ध में नारायण कुलकर्णी की स्कल्पचर विभाग में नियुक्ती हो ही गई। एक बार पुनः उत्साह और सृजनात्मक ऊर्जा का विभाग में प्रवाह हुआ और गतिविधियों में तेज़ी आई। नारायण का मित्रवत् व्यवहार उसे छात्रों के बहुत निकट ले आया था। फलस्वरूप उसके कार्यकाल में अनेक छात्रों ने उभरकर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।