दयानिता सिंह देश की चर्चित फोटोग्राफर हैं, हालांकि वो स्वयं को बुक आर्टिस्ट मानती हैं। उनका प्रोजेक्ट म्यूजियम ऑफ चान्स – बुक ऑब्जेक्ट किताब भी है और प्रदर्शनी भी। हर किताब में 88 फोटो है और 88 अलग-अलग कवर हैं जिन्हें लकड़ी की फ्रेम के साथ इस तरह से अलंकृत किया गया है कि आप उन्हें किसी पेंटिंग की तरह दीवार पर टांग सकते हैं या उन्हें मेज पर भी सजा सकते हैं। दयानिता सिंह से उनकी फोटोग्राफी और उसमें प्रयोगों पर सुनील कुमार की बातचीत
आप अक्सर अपने प्रशंसकों के सामने स्वयं को एक फोटोग्राफर नहीं, एक बुक आर्टिस्ट के रूप में प्रस्तुत करती हैं, ऐसा क्यों?
मैं खुद को फोटोग्राफर नहीं, बल्कि एक बुक आर्टिस्ट मानती हूं। मुझे लगता है कि मैं अपनी कला को सिर्फ फोटोग्राफी के माध्यम से व्यक्त नहीं कर पाती हूं और यही बात मुझे फोटोग्राफी में नये प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती है। जब तक मैं फोटोग्राफी में कुछ नया प्रयोग नहीं करती, तब तक मुझे लगता है कि मेरी रचना अधूरी है।
आपने भारत में फोटोग्राफी की एक लंबी यात्रा देखी है। आपके अनुभव से हम समझना चाहते हैं कि फोटोग्राफी किस स्तर पर पहुंचकर कला हो जाती है?
इसका कोई निश्चित जवाब देना संभव नहीं है। जब कोई तस्वीर खींचता हैं तब वह उसकी सोच और समझ के हिसाब से एक खूबसूरत तस्वीर हो सकती है या एक खराब तस्वीर भी हो सकती है और कुछ मायनों में उसकी अपनी कला भी, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वह कला के पैमानों पर खरी भी उतरे। मैं जब कोई तस्वीर खींचती हूं, तब वह मेरी रचना प्रक्रिया का हिस्सा होती है, न कि वह मेरी कला है। मेरे हिसाब से, फोटोग्राफी को या किसी तस्वीर को सिर्फ इस वजह से कला नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह खूबसूरत है। यह ठीक उसी तरह से है कि हर खूबसूरत पंक्तियों का क्रम कविता नहीं बन जाती है।
आपकी पुरानी तस्वीरों में इंटीरियर टच या फैमिली एसेंस ज्यादा दिखता है। इन दिनों फोटोग्राफी में आप किस तरह का प्रयोग कर रही हैं?
जिन तस्वीरों की बात आप कर रहे हैं, वह कोई दस-बारह साल पुरानी बात है। उसके बाद धीरे-धीरे लोग मेरी तस्वीरों से गायब होते गए। आजकल मैं किताबों को लेकर काम कर रही हूं और संगीत सुन रही हैं। इसका प्रभाव आप मेरी फोटोग्राफी में और मेरी कला में देख सकते हैं। दरअसल, मैं फोटोग्राफी में विषय को लेकर बहुत सजग नहीं रहती हूं, बल्कि बहुत ही सहज रहती हूं। हां, जब मैं उन तस्वीरों की एडिटिंग करती हूं तब आप वहां उस पर मेरी सोच का प्रभाव देख सकते हैं। उस प्रभाव को लेकर और उसके प्रभाव के असर को लेकर मैं हमेशा सतर्क रहती हूं।
क्या यही वजह है कि उन तस्वीरों को या कहें किताब की शक्ल में तस्वीरों को प्रदर्शित करने का आपका तरीका भी दूसरों से जुदा है?
आपने ठीक कहा। सच कहूं तो मेरी रचना में तस्वीर का योगदान सिर्फ दस फीसद है और एडिटिंग का योगदान पचास फीसद, जबकि बाकी का चालीस फीसद हिस्सा वह है जब मैं अपनी रचना के लिए फॉर्म की तलाश शुरू करती हूं। ऐसा इसलिए है कि क्योंकि मेरा मानना है कि किसी भी तस्वीर को मैट पेपर पर उतार देने से या उसे एक खूबसूरत फ्रेम में लगा देने से वह कला का हिस्सा नहीं बन सकती है। इसके लिए जरूरी है कि हम उसके लिए एक फॉर्म की, कंपोजिशन की तलाश करें और तस्वीर खींचने और उसकी एडिटिंग के बाद मेरे लिए यह सबसे महत्वपूर्ण काम होता है। आप इसे ‘फाइल रूम’, ‘म्यूजियम बाइ-चांस’ या ‘गो-अवे क्लोजर’ की तस्वीरों में देख सकते हैं।
हेवर्ड गैलरी में आयोजित आपका फोटोग्राफी शो ‘गो-अवे क्लोजर’ काफी चर्चित हुआ था। उस शो के बारे में कुछ शेयर कीजिए।
हेवर्ड गैलरी में आयोजित मेरा शो मोबाइल म्यूजियम की संकल्पना का हिस्सा था। लेकिन, जब आप फोटोग्राफी में नए प्रयोगों की बात करेंगे, तब मैं यह कहना चाहूंगी कि अब मैं उससे आगे कुछ करने के लिए सोच रही हूं। यह संभव है कि जल्दी ही आप मुझे फोटोग्राफी और प्रोजेक्शन के कुछ मिले-जुले रूप में कुछ नया करते हुए देखें। अब मोबाइल फोन की तकनीक इतनी उन्नत होती जा रही है कि जल्दी ही उनमें प्रोजेक्टर भी होगा। तब संभव है कि मैं कुछ और नया करूं और मोबाइल प्रोजेक्टर के जरिए मैं अपना आर्ट प्रोजेक्ट करते हुए दिखाऊं। कुल मिलाकर यह जरूरी है कि आप अपनी रचना में नए-नए तत्वों को जोड़ें, चाहे वह फोटोग्राफी ही क्यों न हो।
दिल्ली और मुंबई की कई गैलरियों ने पिछले दिनों फोटोग्राफी पर प्रदर्शनियां आयोजित की हैं। क्या यह माना जाए कि फोटोग्राफी में बाजार की रूचि बढ़ रही है?
निश्चित तौर पर औरफोटोग्राफी के लिहाज से यह शुभ संकेत है। जब बात फोटोग्राफी कला की आती है तब यह जरूरी है कि उस कला में तेवर भी हो और बाजार को भी चाहिए कि वह फोटोग्राफरों को इसके लिए प्रोत्साहित करे।
भारत में फोटोग्राफी के क्षेत्र में आप खुद से पहले, किन लोगों का नाम लेना चाहेंगी, जो फोटोग्राफी में कला की खोज कर रहे थे या अभी भी कर रहे हैं?
ऐसे कई नाम हैं जो फोटोग्राफी में कला की दूसरी विधाओं का मेल करके नया कर रहे हैं। आप चाहें तो भूपेन खक्कर, गुलाम मुहम्मद शेख, अनीश कपूर, सुदर्शन चेट्टी, अतुल डोडिया, सुबोध गुप्ता या फिर भारती खेर का नाम ले सकते हैं। ऐसे अनेक नाम हैं।
धन्यवाद।
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