पटना का लोदीकटरा मुहल्ला दो ख्यातिलब्ध चित्रकारों की वजह से जाना जाता है। एक, ईश्वरी प्रसाद वर्मा और दूसरे राधामोहन प्रसाद। ईश्वरी प्रसाद वर्मा पटना कलम के चर्चित चित्रकार थे और राधामोहन प्रसाद शबीहों के। राधामोहन प्रसाद मूलत: शबीह चित्रकार के तौर पर जाने जाते हैं।
7 फरवरी 1907 को लोदीकटरा के निवासी मुंशी कृष्ण प्रसाद के घर राधामोहन प्रसाद का जन्म हुआ। आसपास के माहौल की वजह से स्वाभाविक तौर पर उनका रुझान चित्रकला की तरफ हुआ और फिर अपने बड़े भाई जानकी मोहन की प्रेरणा से उन्होंने चित्रकार मुंशी महादेव लाल से चित्रकारी सीखी।
राधामोहन प्रसाद ने 1927 में बिहार नेशनल कॉलेज से फारसी में स्नातक हुआ। उन्होंने 1929 में कानून की पढ़ाई पूरी की और पिता की इच्छानुसार पटना के वरिष्ठ अधिवक्ता नागेश्वर बाबू के सहायक के रूप में पटना हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। वे जल्दी ही वकालत से ऊब गये और उन्होंने पटना संग्रहालय में नौकरी कर ली।
कहा जाता है कि 18 दिसंबर 1938 को नागेश्वर बाबू अपने यूरोप भ्रमण के संस्मरण अपने मित्रों को सुना रहे थे जिसमें उन्होंने यूरोप की कला, वहां की कला वीथिकाओं, संग्रहालयों और कला छात्रों की चर्चा की। राधामोहन प्रसाद भी वहीं थे। उन्होंने पटना में एक कला विद्यालय खोलने की इच्छा प्रकट की और नागेश्वर बाबू ने तभी उनकी हथेली पर स्कूल खोलने के लिए पांच सौ रुपये रख दिये थे।
25 जनवरी 1939 को बसंत पंचमी के दिन गोविंद मित्रा रोड में कला विद्यालय का शुभारंभ हुए। डॉ. राजेंद्र प्रसाद कला विद्यालय प्रबंधन समिति के पहले सदस्य बने। कला शिक्षण का दायित्व तीन शिक्षकों श्यामलानंद, सिंहेस्वर ठाकुर और हरिचरण को सौंपा गया। स्कूल के लिए चित्रों की पहली खरीद 1940 में की गयी थी जब कांग्रेस के 53वें अधिवेशन में प्रदर्शित पटना कलम एवं लघु चित्र शैली के करीब तीन सौ चित्रों को संग्रहित किया गया था।
1949 में बिहार सरकार ने कला विद्यालय को अपने आधीन ले लिया और उसका नामकरण गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट कर दिया गया। राधामोहन बाबू ने 1952 में बिहार की पहली कला वीथिका की स्थापना की, जिसके लिए देश के बड़े कलाकारों की कलाकृतियां खरीदी गयीं, जिनमें ईश्वरी प्रसाद वर्मा, निकोलस रोरिक, गगनेंद्र नाथ ठाकुर, यामिनी राय, नंदलाल बोस, ओसी गांगुली, डीपी अंबष्ठ, असित कुमार हलधर, डब्ल्यू.जी. लैंगमर की कलाकृतियां शामिल थीं।
राधामोहन प्रसाद करीब तीन दशक तक आर्ट स्कूल का मार्गदर्शन करते रहे। कला से साथ-साथ संगीत में भी उनकी गहन रुचि थी। संगीत की शिक्षा उन्होंने पंडित श्याम नारायण मिश्र से पायी थी। उन्हें पटना कलम शैली और समकालीन आधुनिक कला की बीच की कड़ी कहा जा सकता है। पटना कलम की जल चित्रकारी से तैल चित्रण की तरफ शिफ्ट राधामोहन बाबू का योगदान माना जाता है। उनके रचनात्मक योगदान के लिए उन्हें रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन की फेलोशिप और ललित कला अकादमी, दिल्ली से रत्न सदस्य का सम्मान दिया था। ललित कला ने उन पर एक मोनोग्राफ का प्रकाशन भी किया था।
उनके बनाये चित्र बिहार राजभवन, बिहार विधानसभा भवन, पटना उच्च न्यायालय, पटना विश्वविद्यालय सभागार, श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र, जयप्रकाश नारायण के आवास, राज्य कला वीथिका, ललित कला अकादमी और आईफेक्स, नई दिल्ली समेत अनेक स्थानों पर संग्रहीत हैं।
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References:
विनय कुमार (2013) “बिहार की समकालीन कला “, पटना: कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार. पृ. 24
“बिहार के 100 रत्न “, संपादन:विनोद अनुपम. पटना : कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार. पृ. 122
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