लोकगाथा हिरनी-बिरनी और पोसन सिंह : कथानक

Hirani-Birani with "Mohan', Cover painting, Book: Hirani-Birani, Dr. Mridula Shukla
Hirani-Birani with "Mohan', Cover painting, Book: Hirani-Birani, Dr. Mridula Shukla

ये कथा है दो नटिन बहनों की, जिनका नाम था हिरनी और बिरनी। दोनों एक ही वीर के प्रति आकृष्ट थीं और उसे अपने पति स्वरूप में पाना चाहती थीं। उस वीर का नाम था पोसन सिंह, जो जाति का क्षत्रिय था। हिरनी और बिरनी ने पोसन सिंह को हासिल करने के लिए एक रणनीति बनायी।

उस रणनीति की बात आगे करेंगे, उससे पहले आपको बताते चलें कि हिरनी और बिरनी के पास एक ऐसा मुर्गा था, जो मुर्गों के दंगल में कभी हारता नहीं था। जब भी वह मुर्गा दंगल जीतकर आता, तो हिरनी-बिरनी उसे हारे हुए मुर्गे का मांस खिलाती। कहा जाता है कि वह मुर्गा सात दंगलों को जीत चुका था और हारे हुए सातों मुर्गे का मांस खाकर बहुत ताकतवर बन चुका था। हिरनी-बिरनी के बाद एक भीमकाय भैंसा भी था जिसका नाम था मोहन।

हिरनी-बिरनी की रणनीति यह थी कि जब वो पोसन सिंह से शादी करने में सफल हो जाएंगी तो उसे दंगली मुर्गे का मांस खिलाएंगी। चूंकि वह मुर्गा सात मुर्गों का मांस खाया है, इसलिए उसका सुरूआ (रस) इतना ताकतवर होगा कि वह पोसन सिंह की छाती छेदकर बाहर निकल आएगा। इससे उसकी छाती में एक दाग हो जायेगा और जब पोसन सिंह उन दोनों बहनों का परित्याग करने की सोचेगा, तब वे गांव-समाज को बता देंगी कि पोसन सिह ने मुर्गे का मांस खा लिया है। वह भी वैसे मुर्गे का मांस जिसने खुद सात मुर्गे का मांस खाया है। वह आपनी बात साबित कर सकती है क्योंकि पोसन सिंह की छाती पर दाग रहेगा। फिर वह पोसन सिंह के सामने यह शर्त रख पाएगी कि अगर उसके मोहन भैंसा को नाथ देगा, तब दोनों बहनें ताउम्र उसकी दासी बन जाएगी और अगर वह असफल रहा तो उसे दोनों बहनों से ब्याह करना होगा। यह विचार करके दोनों बहनें बावनगढ़ अखाड़ा जाने की तैयारी करने लगीं।

हिरनी-बिरनी सोलहों श्रृंगार करके, मोहन भैंसा पर सारा सामान – ढोल, मंजीरा, सात भर जादू और दंगली मुर्गा लादकर और मोहन भैंसा को शराब पिलाकर अपने निवास स्थान गुजरात होते हुए बंबई पहुंची हैं और फिर वहां से नेपाल। घूमते-घूमते वे दोनों बहनें बंगाल भी पहुंचीं, लेकिन उन्हें मोहन भैंसा को नाथने वाला कोई वीर जवान नहीं मिला। बंगाल से दोनों पटना पहुंचती हैं जहां वीरसेन का अखाड़ा था। उस अखाड़े में बड़े-बड़े पहलवान, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी, मल्ल अभ्यास करते थे। कहते हैं कि उसमें तीन सौ साठ पहलवान कुश्ती लड़ा करते थे।

हिरनी-बिरनी ने उसी वीरसेन अखाड़ा के पास एक पेड़ से मोहन भैंसा को बांध दिया और ढोलक ढम-ढम करते हुए पूरे इलाके में डंका पीटने लगी कि है कोई माई का लाल, वीर-नौजवान, जो मेरे मोहन भैंसा को नाथ सके। वे दोनों बहनें दूसरों को ललकारने लगीं, धिक्कारते हुए कहने लगीं कि अगर किसी में कूबत है तो वह मोहन भैंसे को नाथ दे। जो ऐसा करने में सफल रहेगा, उसकी वे दोनों बहने दासी हो जाएगीं और अगर वह भैंसा नाथने में असफल रहा तो दोनों बहनें उससे शादी कर लेंगी।

हिरनी-बिरनी की धिक्कार-ललकार सुनकर वीरसेन अखाड़े के गुरु मोतीलाल ने अपने तीन सौ साठ पहलवान चेलों से कहा कि यह दोनों नटिन बहनें यहां की परंपरा को धिक्कार रही हैं, सबको चुनौती दे रही हैं। तुम सब इस चुनौती को स्वीकार करो और मोहन भैंसा को नाथकर दोनों नटिन बहनों का अहंकार तोड़ो। उसके बाद तो तीन सौ साठ पहलवान एक तरफ और हिरनी-बिरनी का भैसा एक तरफ। दोनों बहनों ने मोहन भैंसा पर जादू का जोर भी डाल दिया था। रात भर भीषण लड़ाई चली जिसमें तीन सौ साठों पहलवान मारे गये। मोहन भैसा ने पहलवानों के गुरु मोतीलाल को भी मार डाला।

उसके बाद, हिरनी-बिरनी उस जगह से अपने सभी सामान समेटकर उसे भैंसा पर लादकर अपने मुर्गे के साथ अखाड़ा-अखाड़ा घूमती रही और पहलवानों को धिक्कारती रही। पहलवान भी युद्ध करते रहे और मोहन भैंसे को नाथने की कोशिश में मारे जाते रहे। इस तरह से नगर-नगर, बस्ती-बस्ती घूमते हुए हिरनी-बिरनी बावनगढ़ अखाड़ा पहुंची और डंका बजाते हुए अपनी शर्त दुहराती रही।

नटिनों की ललकार और शर्तों को सुनकर बावनगढ़ अखाड़े का गुरु पहलवान उजैन सिंह का स्वाभिमान जाग गया। वह जाति धरम को दांव पर लगाकर मोहन भैंसा से युद्ध करने और उसे नाथने का शर्त स्वीकर कर लिया। तीन दिन और तीन रात तक मोहन भैंसा और उजैन सिंह के बीच युद्ध चलता रहा। अंत में उजैन सिंह को भी मोहन भैंसे ने मार दिया।

मोहन भैंसे द्वारा गुरु के मारे जाने की खबर सुनकर पोसन सिंह बौखला गया। उसने बदला लेने के लिए ठानी। वह हिरनी-बिरनी के डेरा पर पहुंचा लेकिन दोनों बहनों की सुंदरता देखकर मोहन भैंसा को नाथने की शर्त मान लिया। फिर मोहन भैंसा और पोसन सिंह के बीच जमकर युद्ध होता है। कभी मोहन भैंसा पोसन सिंह को पटकता है तो कभी पोसन सिंह मोहन भैंसे को। लंबे युद्ध के बाद एकदम से पोसन सिंह मोहन भैंसे को जमीन पर पटक देता है और कुसवा के डोंगा से भैंसा को नाथ देता है। शर्त के मुताबिक हिरनी-बिरनी उसकी दासी-पत्नि हो जाती है।

हिरनी-बिरनी तब पोसन सिंह को दंगली मुर्गे का मांस पकाकर खिलाती है जिसका उसका सुरूआ पोसन सिंह की छाती से बाहर आ जाता है। यह सुनकर पोसन सिंह की मां, भाई, बहन और उसकी पत्नी सभी अपनी छाती पीटने लगते हैं, जार-बेजार रोते हुए पोसन सिंह के पास जाती हैं और धरम और जाति की मर्यादा तोड़ने के लिए उसे कोसने लगते हैं। पोसन सिंह तो शर्तों में बंध चुका था। वह सबको समझाता है कि यह तो विधि का विधान था, सो हो गया। अब रोने या चिंता करने से क्या फायदा।

नटिन से शादी के अपराध में पोसन सिंह को जाति-धर्म से बाहर निकाल दिया जाता है और पोसन सिंह अपना महल छोड़कर हिरनी-बिरनी के साथ उसके डेरा पर रहने लगता है। कथा के अनुसार हिरनी से उसे दो पुत्रों और बिरनी से तीन पुत्रों की प्राप्ति होती है। आगे चलकर वह हिरनी-बिरनी और अपने पुत्रों के साथ अपनी जन्मभूमि वापस लौटता है और धन-बल के जोर पर न केवल अपनी जाति में फिर से स्थान पा लेता है, बल्कि अपने बेटों की शादी भी क्षत्रिय कुल में कर देता है।

संकलन: हसन इमाम, चर्चित रंगकर्मी, पटना, बिहार।

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