नेपाल की तराई में बसे गांव महिसौथा में दुसाध जाति के एक महात्मा रहते थे। उनका नाम वाक मुनि था। वे 12 वर्ष की कठोर तपस्या में लीन थे। एक दिन इन्द्रलोक से मायावती नाम की एक अप्सरा फूल लोढ़ने के लिए महिसौथा आयी। फूल लोढ़ने के क्रम में उनकी नजर साधना में लीन वाक मुनि पर पड़ी और उनके सुंदर रूप को देखकर मोहित हो गयी। मायावती ने अपनी सुंदरता और कामरत हाव-भाव से वाक मुनि की तपस्या भंग कर दी। तपस्या भंग होने से क्रोधित वाकमुनि ने मायावती को श्राप दिया कि जिस प्रकार उसने उनकी तपस्या भंग की है, उसी तरह अब उसे इन्द्रपुरी में स्थान नहीं मिलेगा और उसे मृत्युलोक में भटकना पड़ेगा।
मुनि के श्राप को सुनकर मायावती अंतर्नाद करते हुए उनसे क्षमा याचना करने लगती है। मायावती की क्षमा याचना से द्रवित होकर वाक मुनि कहते हैं कि उनका शाप वापस तो नहीं हो सकता, लेकिन मृत्यु लोक में वह दिव्य शक्ति संपन्न तीन पुत्रों और एक पुत्री की माता बनेगी और गौरव प्राप्त करेगी। मुनि कहते हैं कि मृत्युलोक में वह मंदोदरी के नाम से जानी जाएगी। वह यह भी बताते हैं कि मंदोदरी को पहला महिसौथा के कमलदल तालाब में पुरईन के पत्ते पर मिलेगा और वह उसका नाम सलहेस रखे। बड़ा होकर वह दैवी शक्ति से संपन्न राजा बनेगा। उसका बड़ा नाम होगा। कलियुग में भी लोग उसकी पूजा करेंगे। इसके बाद दो पुत्रा और एक पुत्री पैदा होगी। मझले का नाम मोती राम और छोटे पुत्र का नाम बुधेसर रखेगी। उसकी बेटी बनसप्ती के नाम से जानी जाएगी। इतना कह कर मुनि अन्तर्ध्यान हो गये।
तत्पश्चात, इंद्रलोक की अप्सरा मायावती मृत्युलोक में मंदोदरी बनी। मंदोदरी को महिसौथा के कमलदह तालाब में पुरईन के पत्ते पर एक बच्चा मिला। यही बच्चा सलहेस हुए। काल-क्रम से मंदोदरी ने दो लड़के और एक लड़की को जन्म दिया। मुनि के कथनानुसार मंझले का नाम मोती राम, छोटे का बुधेसर और लड़की का नाम बनसप्ती हुआ। इस तरह तीनों भाई ने मिलकर महिसौथागढ़ में अपना राज्य स्थापित कर लिया। बनसप्ती जादूगरनी बन गयी। कहा जाता है कि छ: महीना आगे-पीछे वह जानती थी। बनसप्ती का प्रेम विवाह सतखोलिया के राजा शैनी से हुआ। इससे उसे एक पुत्रा पैदा हुआ जिसका नाम करिकन्हा रखा गया। वह स्वभाव से बड़ा ही उदंड था।
सलहेस जब 12 वर्ष के हुए तब मंदोदरी को उनके विवाह की चिंता होने लगी। तब तक सलहेस ने महिसौथा में अपना विशाल राज्य स्थापित कर लिया। चौदह कोस में उसके राज्य का विस्तार हो गया। सलहेस के विवाह के लिए योग्य लड़की की तलाश होने लगी। पंडित और नाई अनेक राज्यों में घूम-घूम कर योग्य कन्या की तलाश करने लगे लेकिन सलहेस के योग्य कोई लड़की नहीं मिली। आखिर में मंदोदरी ने पंडित और नाई को बुला कर कहा कि बराटपुर के राजा बराट की एक पुत्री है। बड़ी ही सुशील और संस्कारवाली। उसका नाम है सामरवती। जन्म लेते ही उसने प्रतिज्ञा कर रखी है कि वह यदि विवाह करेगी तो महिसौथा गढ़ के राजा सलहेस से नहीं तो आजन्म कुंवारी ही रहेगी। इसलिए राजा बराट को सलहेस के सामरमती से विवाह का संदेश दे दीजिए। राजा बराट को लिखा विवाह के इस प्रस्ताव का पत्रा लेकर चन्देसर नाम का नाई महिसौथा से बराटपुर के लिए प्रस्थान किया।
राजा बराट जाति से क्षत्रिय थे और स्वभाव से अत्यंत कठोर। नाई से विवाह संबंधी प्रस्ताव का पत्रा पढ़ते ही वह आग-बबूला हो गया और उसे जेल में डलवा दिया। इधर महिसौथा राज में चन्देसर हजाम के वापस नहीं आने से लोगों की चिंता बढ़ गयी। मोतीराम ने माता दुर्गा को स्मरण किया और सारी बातें उन्हें विस्तार से बता दिया। दुर्गा ने तुरंत प्रकट होकर मोती राम को बता दिया कि राजा बराट ने चन्देसर हजाम को कैद कर लिया है तथा यह भी कहा कि सलहेस का विवाह राजा बराट की पुत्री सामरवती से ही लिखा है। यह होकर रहेगा। इतना सुनते ही मोती राम का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया। उसने अपने भांजा करिकन्हा को बुलवाया और बराटपुर के लिये प्रस्थान किया। रास्ते में एक साथ सात सौ घसवाहिनियां मिलीं। ये सब के सब जादुगरनी थी। सबों ने मोतीराम को अपने जादू के बस से परेशान कर दिया। बाद में मोतीराम से उन्हें परास्त होना पड़ा। इस तरह मोतीराम अपने भांजे के साथ बराटपुर पहुंचे। राजा बराट उनकी शक्ति के सामने अपने को कमजोर समझ कर हथियार डाल दिये। चन्देसर नाई को रिहा कर दिया। राजा बराट ने विवाह की सहमति दे दी। बारात सजा कर लाने के लिए मोतीराम अपने भांजे के साथ वापस महिसौथा आ गये।
बीच का एक और घटनाक्रम इस लोकगाथा को विस्तार देता है। राजा हिनपति मोरंग के राजा थे। उनकी स्त्री थी दुखी मालिन। इस मालिन की कोख से रेशमा, कुसुमा, दौना, तरगेना और फूलवंती पांच बेटियां पैदा हुई थी। लोकगाथा में कहीं-कहीं सात बेटियों की चर्चा मिलती है जिसमें हिरिया, जिरिया, रेशमा, कुसमा, दौना, तरेगना और फूलवंती। इनमें सबसे बड़ी फूलवंती थी। जन्म के साथ ही फूलवंती ने सलहेस से विवाह करने का संकल्प लिया हुआ था। अब तक उसकी मुलाकात सलहेस से नहीं हुई थी। दुर्गा की आराधना के पश्चात् सभी बहनें सलहेस की तलाश में घर से निकल पड़ी। वे सब भी जादू जानती थी। सलहेस की तलाश करते हुए वे सभी महुरावन में आ गयी, जहां से मोती राम अपने भाई सलहेस की बारात सजा कर बराटपुर के लिए प्रस्थान करने वाला था। मोती राम ने सलहेस को भौरानंद हाथी पर सवार करा दिया और बारातियों को चेतावनी दे दी कि मोरंग की पांचों बहन मलिनिया भईया पर आंख लगाये हुए है इसलिए सावधान रहना। दिन रहते बारात बराटपुर पहुंच गई। दरवाजा लगाने के लिए उचित समय आने के इंतजार में सभी बाराती आराम करने लगे।
उधर महुरावन में पांचों मलिनिया सो रही थीं कि देवी दुर्गा ने उसे सपने में बता दिया कि जिस सलहेस से विवाह के निमित्त तुम प्रतिज्ञा किये हुए हो उसे मोतीराम राजा बराट की पुत्री से विवाह कराने के लिये ले जा रहा है। अगर बराट की पुत्री से सलहेस का विवाह हुआ, तो तुम्हारी मनोकामना पूर्ण नहीं होगी। यह सुनते ही पांचों बहन बराटपुर पहुंच गयीं जहां मोतीराम, करिकन्हा समेत सभी बाराती नींद में बेसुध थे। पांचों बहन ने जादू के बल पर सलहेस को सुग्गा बना दिया और पिंजड़ा में लेकर भाग चली।
जब बारातियों की नींद खुली तो भौरानंद हाथी पर सलहेस को न पाकर तरह-तरह की चर्चा होने लगी। मोतीराम ने इस घटना को दुर्गा की करतूत मानते हुए घोड़े पर सवार होकर उनका पीछा करना शुरू कर दिया। उसने जब दुर्गा को स्मरण करते हुए अपने भाई के बारे में पूछा तो दुर्गा ने उसे बताया कि पांचों मलिनिया सलहेस को लेकर ठेंगटी गांव में पहुंच गयी है। मोतीराम जब वहां पहुंचा तो पांचों मलिनियां सलहेस को खीर बनाकर बरगद के घोंघड़ में रख कर स्वयं नटिन का रूप धरण कर एक जगह बैठ गयी। मोतीराम ने जब सलहेस के बारे में पूछा तो पांचों बहनों ने अपनी अनभिज्ञता जतायी। इसके बाद उसका उग्र रूप देख कर मार-पीट के डर से सलहेस को उसके असली रूप में लाकर उसके हवाले कर दिया। इसके बाद मोतीराम सलहेस के साथ बराटपुर आये और राजा बराट की पुत्री से उसका विवाह हुआ।
विवाह की रात में कोहबर घर से फिर पांचों मलिनियां जादू के बल पर सलहेस को चुरा ले गयी। अंत में सामरवती ने यह विश्वास दिला कर उनसे सलहेस को मांग लिया कि जैसे ये हमारे पति हैं वैसे तुम्हारे भी पति हैं। मायके से ससुराल महिसौथा जाने के तुरंत बाद मैं अपने स्वामी को तुम्हारे पास मोरंग भेज दूंगी। सामरवती के ऐसा विश्वास दिलाने के बाद पांचों बहनों ने सलहेस को असली रूप में सामरवती को वापस कर दिया और वे सब महिसौथा वापस आ गये। सलहेस के बाद मोतीराम और बुधेसर का भी विवाह हुआ। सलहेस को जब सामरवती द्वारा पांचों बहन मालिन को दिये गये वचन के बारे में मालूम हुआ तो वह उत्तराखंड राज के राजा भीम सेन के यहां नौकरी करने चला गया।
महिसौथा गढ़ में सलहेस की याद में उदासी छा गयी। एक दिन राजा भीम सेन के राज में नौकरी करते हुए फुर्सत के समय में सलहेस कदम्ब गाछ के नीचे बांसुरी बजा रहे थे कि पेड़ पर बैठा एक सुग्गा सीता-राम-सीता-राम करने लगा। वे उस सुग्गे को पहचान गये। वह महिसौथा का उनका प्यारा सुग्गा हिरामन था। वह पेड़ से उतर कर उनके पास आया और महिसौथा गढ़ का सारा हाल सुनाने लगा। कहा कि उनके वियोग में मां, भाई, सामरवती और महिसौथा गढ़ का बुरा हाल है। इतना सुनकर सलहेस वापस महिसौथा आ गये। इसके बाद बंगाल के तीसीपुर के क्षत्रिय राजा की बेटी कुसुमावती से मोतीराम और श्यामल गढ़ के राजा श्याम सिंह की पुत्री श्यामलवती से बुधेसर का विवाह होता है।
इस अन्तर्जातीय विवाह में संघर्ष, जादू-टोना और दाव-पेंच सलहेस लोक गाथा या नाच को रोमांचित भी करता है और उसे लोकप्रियता भी प्रदान करता है। सामंती समाज व्यवस्था में जातिगत आधार पर जो द्वन्द्व था वह इस लोक गाथा में स्पष्ट दृषिटगोचर होता है। यह लोक गाथा उस समय मोड़ लेती है जब सलहेस की पत्नी सामरवती पांचों बहन मलिनियां को दिये अपने वचन की याद दिलाते हुए स्वामी सलहेस से कहती है कि वह वचन पूरा करने के लिए उन्हें मोरंग जाकर उनसे मिलना चाहिए। वह कहती है कि जिस रात मेरे कोहबर से आप को चुरा लिया गया था उस दिन इसी शर्त पर मालिन से मैं आपको मांग लायी थी कि गौना के बाद मैं आपको उन्हें सौंप दूंगी। मैं वचन हार चुकी हूं। इसलिए आप वह वचन पूरा कीजिए। इसी बात पर सलहेस मोरंग के लिए प्रस्थान करते हैं। साथ में है वही हिरामन सुग्गा जो भूत-भविष्य सब जानता है। मोरंग पहुंच कर परबा पोखर पर वे ठहर जाते हैं।
यहां देवी दुर्गा फिर एक बार करिश्मा करती है। पहर रात रहते दुर्गा भोर होने का आभास कराकर फूलवंती को पोखर में स्नान कराने के लिए भेज देती है। इधर हिरामन की सलाह पर सलहेस पोखर में भरपूर मात्रा में सिंदूर डाल कर एक किनारे बैठ जाते हैं। ज्यों-ही पफूलवंती पोखर में प्रवेश कर पानी छींटा मुंह पर देती है कि संपूर्ण माथा सिंदूर के रंग से लाल हो जाता है। इसके बाद तो हंगामा हो गया कि कोई छल से फूलवंती की मांग में सिंदूर डाल दिया। बात फूलवंती के पिता राजा हिनपति तक पहुंचती है। फूलवंती पंडित के भेष में बैठे सलहेस को नहीं पहचान पाती है। राजा के सिपाही सलहेस को गिरफ्तार कर जेल में डाल देते हैं।
देवी दुर्गा एक बार फिर सहायक बनती है और सलहेस के मोरंग में गिरफ्तार होने की खबर महिसौथा गढ़ पहुंच जाती है। यहां से मोतीराम और भांजा करिकन्हा दोनों मोरंग पहुंचते हैं। पहले राजा हिनपति के पुत्र करण सिंह और मोतीराम के बीच युद्ध में करण सिंह मारे जाते हैं। अब बारी हिनपति की आती है तो फूलवंती बीच बचाव करते हुए मोतीराम से कहती है कि मैं आपकी भाभी हूं। इस पर मोतीराम राजा हिनपति को जीवित छोड़ देते हैं। राजा हिनपति सलहेस को आजाद कर देते हैं। इसके बाद मोरंग की पांचो बहनें राजा सलहेस के दर्शन के लिए महिसौथा गढ़ आकर दुर्गा से आग्रह करती है कि वे उनका दर्शन किसी तरह करा दें। रेशमा, कुसमा, दौना, तरेगना और पफूलवंती पांचों बहनें यह संकल्प लेती है कि यदि उन्हें सलहेस के दर्शन नहीं हुए तो वे एक साथ विष खाकर जान दे देंगी। इस पर दुर्गा उन्हें मानिकदह पोखर पर आकर इंतजार करने को कह कर सलहेस को भी उस पोखर पर आने के लिए प्रेरित करती है। सुग्गा हिरामन यहां भी यह कहते हुए सलहेस को सावधान करता है कि वहां जाने पर जादुगरनी मालिनें आपको फिर सुग्गा बनाकर पिंजड़ा में कैद कर लेगी।
राजा सलहेस प्रतिदिन मानिकदह में स्नान कर वहां से फूल लाकर अपने इष्ट देवता की पूजा करते थे। वो इसमें किसी तरह का व्यतिक्रम करना वह नहीं चाहते थे। इसलिए हिरामन की सलाह पर वे पंडित का भेष धरण कर मानिकदह पहुंच गये। वहां वे देखते हैं कि स्नान करने वाले सभी पांचों धर को पहले से मालिन युवतियां छेके हुए है। वे उनसे एक धर खाली कर देने का अनुरोध करते हैं। इस पर पंडित भेषधरी सलहेस से वे कहती हैं कि हम लोग सलहेस से मिलने की प्रतीक्षा में यहां बैठी हैं। इस पर सलहेस कहते हैं कि हम तो ब्राह्राण हैं। स्नान करके पूजा करने जाना है। इसलिए एक धर छोड़ दो। तुम्हारा सलहेस तो महिसौथा में बैठा हुआ है।
पांचों बहन मालिन ठगी जाती है। दुर्गा को भला-बुरा कहने लगती है। इस पर दुर्गा भेद खोलते हुए कहती है कि वह जो पंडित था वही तुम्हारा सलहेस था। इसके बाद चन्द्रग्रहण के अवसर पर जब सलहेस मानिकदह में स्नान करने आते हैं तो वहां पहले से डेरा जमाये हुए पांचो बहनें गहरी नींद में सो रही थीं। दुर्गा ने उन्हें पहले ही बता दिया था कि चन्द्रग्रहण के अवसर पर तुम्हें निशिचत रूप से सलहेस से भेंट होगी। दुर्गा की कृपा से उन सबों की नींद टूटती है और उन्हें सलहेस के दर्शन हो जाते हैं। इन पांच बहनों का सलहेस से चिर प्रतिक्षित मिलन इस लोक गाथा का सर्वाधिक कारूणिक पक्ष माना जाता है।
मिलन के बाद जब पांचों बहनें यह कहती हैं कि आपसे विवाह की प्रतीक्षा में मैंने मां-बाप को छोड़ दिया। मोरंग में विवाह के लिए बने मंडप को ठुकराया, सखी-सहेलियों की बातें नहीं मानी और अपने पिता के घर को लात मार कर चली आयी। अब मेरा वयस भी बीत चुका है। बाल पक गये। दांत टूट चुके हैं। अब मेरी जिंदगी का क्या होगा? हमारा नाम कैसे चलेगा, अरे निर्मोही। मेरी आश तो पूरी कर दो। उनके इस कथन पर दिव्यशक्ति संपन्न सलहेस ने कहा-’यह सतयुग है। इसके बाद कलियुग आयेगा। हमारे साथ तुम्हारी भी पूजा घर-घर में होगी। मेरे दाहिने भाग में भाई मोतीराम और साथ में बुधेसर रहेगा। तुम हमारे बायें भाग में रहोगी और इसी रूप में लोग हमारी पूजा करेंगे। गहवर में हाथी पर सवार राजा सलहेस की प्रतिमा के दोनों ओर फूलों से भरी डाली हाथ में लिए जो मालिन खड़ी दिखाई देती हैं, वे वही मालिन बहनें हैं। महिसौथा गढ़ से 6-7 मील दूर आज भी राजा सलहेस की फुलवाड़ी के अवशेष कायम हैं जहां जूड़-शीतल के मौके पर विशाल मेला लगता है।
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* Bihar Folklore series, FLN No.-1, Area: Bihar, Nepal. Community: Mostly Dushadh and Paswan, Collection: Sunil Kumar, GZB
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