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समकालीन लोक कला

 350

Author: Vinay Kumar
Publisher: Vijaya Books
Year: 2018 | Pages: 164 | Cover: Hardbound
Language: Hindi
ISBN: 978-93-81480-22-9

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Description

इस देश में समकालीन आधुनिक कलाओं पर बात करते-करते लोक कला की बात पचती नहीं है यह ठीक वैसे ही है जैसे देश के एक सरकारी कला प्रतिष्ठान द्वारा लोक कलाओं के लिए जा रहे इनीसिएटिव्स समकालीन कलाकारों को रास नहीं आता है। दरअसल कलाओं के क्षेत्र में यह एक औपनिवेशिक दृष्टि है। जहाँ मुट्ठीभर समकालीन आधुनिक कलाओं को करोड़ों लोक कलाओं के ऊपर वर्चस्व स्थापित है और लोक कलाएँ शैडो एरिया में गुजर-बसर करने को बाध्य हैं, उन्हें द्वितीय श्रेणी के नागरिक का दर्जा प्राप्त है। सच्चाई यही है कि आज भी चाक्षुष कला के क्षेत्र में लोक कलाएँ जन-जन मेंं जीवन की तरह विन्यस्त हैं। जहाँ जीवन और कलाएँ अलग-अलग नहीं हैं। कमलादेवी ने सही लिखा है कि लोक कलाएँ वो ताकत है जो मनुष्य को अपने घर के लिए उद्देश्यपूर्ण रचना के लिए पे्ररित करता है जो उनके जीवन को समृद्घ और खूबसूरत बनाता है। ये कलाकर एक आदमी की तरह जिंदगी जीते हैं जिनके जीवन में डूअलिज्म नहीं है। इकहरा है सब-कुछ। दुर्भाग्य है कि समकालीन कला विमर्श में इन्हें स्थान नहीं मिलता रहा है। अपेक्षाकृत इन पर कम लिखा-पढ़ा गया है। या यूं कहें इन्हें कम गंभीरता से लिया गया है। चाहे वर्ली कला हो या जादूपेटिया मिथिला चित्रकला हो या नागालैंड का स्क्रॉल पेंटिंग, मंजूषा हो या ढोकरा कास्टिंग या फिर फोक पॉटरी, सभी कला की मुख्य धारा में उपेक्षित हैं।

(इसी पुस्तक से)

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