पटना कलम शैली स्वतंत्र रूप से दुनिया की पहली ऐसी कला शैली थी जिसने आमलोगों के जन-जीवन को अपनी कला में जगह दी। मुगल और यूरोपियन चित्र शैली के सम्मिश्रण से विकसित हुई पटना कलम चित्र शैली के आखिरी कलाकार ईश्वरी प्रसाद वर्मा थे। 1861 में ईश्वरी प्रसाद वर्मा का जन्म पटना सिटी के लोदी कटरा मुहल्ले में हुआ था। उनके पिता बाबू फकीरचंद और उनकी मां सोना बीबी, दोनों पटना कलम के चित्रकार थे।
सोना बीबी ने पटना कलम की बारीकियां अपने पिता और अपने समय के ख्यातिलब्ध चित्रकार शिवलाल से सीखी थीं। तब शिवलाल शाही मुसब्बिर की तौर पर जाने जाते थे। उनकी अपनी एक चित्रशाला थी जिसे शाही मुसब्बिर खाना कहा जाता था। घर में चित्रकला का माहौल था, ऐसे में ईश्वरी प्रसाद की रूचि स्वभाविक तौर पर चित्र बनाने के प्रति विकसित हुई।
कहा जाता है कि महज सोलह वर्ष की आयु में ईश्वरी प्रसाद पटना कलम के सिद्धहस्त कलाकार बन चुके थे। वह अपने नाना शिवलाल के साथ चित्रों के क्रय-विक्रय करने के क्रम में नियमित रूप से कलकत्ता आया-जाया करते थे, अंग्रेज अधिकारियों के संसर्ग में आने के कारण वे अंग्रेजी बोलने और समझने लगे थे। उन्हें चित्रकला के साथ-साथ संगीत में भी विशेष रूचि थी। सितार उनका प्रिय वाद्य यंत्र था।
1883 में शिवलाल की मृत्यु के बाद ईश्वरी प्रसाद वर्मा आरा के जाने-माने व्यवसायी और कला प्रेमी निर्मल कुमार जैन के घर कला शिक्षण शुरू किया। पारिवारिक परिस्थितियों के कारण कुछ समय पश्चात् वह अपने पिता के पास जोहरा स्टेट, मध्यप्रदेश चले आए जो अंग्रेजी हुकूमत के लिए काम करते थे। चार वर्ष पश्चात् जब फकीरचंद का तबादला मथुरा के लिए हुआ, तब ईश्वरी प्रसाद भी उनके साथ मथुरा चले आये। मधुरा के कलाप्रेमी सेठ राजा लक्ष्मण दास ने उन्हें अपना दरबारी चित्रकार नियुक्त किया।
मथुरा प्रवास के दौरान ईश्वरी प्रसाद ने चित्रकला और संगीत का जमकर अभ्यास किया। कुछ वर्ष पश्चात् पिताजी के देहांत के बाद वे कलकत्ता चले आए। 1904 में उन्होंने बऊ बाजार स्थिति कला महाबिद्यालय में लघु चित्रकला के अध्यापक की नौकरी कर ली। यहां उनकी मुलाकात सुप्रसिद्ध चित्रकार अवनीन्द्र नाथ ठाकुर, पर्सी ब्राउन और ई.वी. हैवेल से हुई जिन्होंने उनकी योग्यता को देखते हुए भारतीय कला शैली विभाग की स्थापना की। ईश्वरी बाबू उसके विभागाध्यक्ष नियुक्त किये गये। जल्दी ही उन्हें कला महाविद्यालय का उप-प्राचार्य बना दिया गया। कला महाविद्यालय से सेवानिवृत होने के पश्चात् वे पटना चले आये जहां 9 जून 1949 को महेंद्रू में उनका निधन हुआ।
ईश्वरी प्रसाद वर्मा के बनाये चित्रों में पर्दानशीन, चाइल्ड इन वर्ल्ड, भारत माता, मीर अमीर जान साहब उल्लेखनीय हैं। वे हांथी दांत, अबरक की परतों, सिल्क और कागज पर चित्राकंन में माहिर कलाकार थे। पारंपरिक ढंग से कागज, रंग और तूलिका बनाने में माहिर थे। उन्होंने यूरोपीय कला के आधार पर बड़े तैल चित्रों का भी निर्माण किया। उनके चित्र कलकत्ता और पटना संग्रहालय के साथ-साथ देश-विदेश के अनेक महत्वपूर्ण कला संग्रहालयों में सरक्षित हैं।
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Other links:
Patna Kalam: Its Glory and Saga
Patna Kalam: Patna School of Painting
बाजार और मूल्य पर आधारित थे पटना कलम के चित्र: डा. राखी कुमारी
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