कुमुद शर्मा बिहार की पहली महिला चित्रकार थीं, जिन्होंने राष्ट्रीय समकालीन कला आन्दोलन में अपनी अहम भूमिका निभायी। उनका जन्म 1926 में पटना में हुआ। उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इसके बाद की पढ़ाई वो कला में करना चाहती थीं लेकिन कहा जाता है कि महिला होने के कारण उनका नामांकन कला एवं शिल्प विद्यालय के प्राचार्य ने नहीं किया। यह बात उन्हें आजीवन सालती रही।
कुमुद शर्मा की कला यात्रा पटना कलम और राजा रवि वर्मा के चित्रों की अनुकृतियों से शुरू हुई। पटना कलम चित्र शैली के अंतिम महत्वपूर्ण कलाकार ईश्वरी प्रसाद वर्मा से उन्होंने कला की बारीकियां सिखीं। 1941 में पंद्रह वर्ष की आयु में उनका विवाह पंडित राम अवतार शर्मा के पुत्र पंडित नलिन विलोचन शर्मा से हुआ, जहां वो साहित्य जगत के संपर्क में आयीं।
कहा जाता है कि नंललाल बोस जब राजगीर आये तब वे कुमुद शर्मा के घर ठहरे थे और वे कुमुद शर्मा द्वारा बुद्ध के जीवन पर बनाये लघु चित्रों से बेहद प्रभावित थे। 1961 में नलिन जी का देहांत हुआ जिससे कुमुद शर्मा लंबे समय तक सदमे में रही और फिर नियमित रूप से चित्रांकन ने उन्हें उस सदमें से उबरने में मदद की। उन्होंने महिला को अपने चित्रों के केंद्र में रखा और महिलाओं की उपेक्षा, उन पर किये जाने वाले अत्याचार, उनके संत्रास पर चित्र बनाये। वे अखिल भारतीय महिला परिषद् की सचिव के रूप में महिलाओं की समस्या के लिए आजीवन संघर्षशील रहीं।
1966 में कुमुद शर्मा के चित्रों की पहली प्रदर्शनी श्रीधरानी आर्ट गैलरी, नई दिल्ली में लगी। उसके पश्चात् 1966, 68, 71, 74, 79 और 1993 में दिल्ली के अलग-अलग गैलरियों में उनके चित्र प्रदर्शित किये गये। मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में उनकी पहली प्रदर्शनी 1971 में लगी। उन्होंने अनेक एकल और सामूहिक प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया। नेपाल में भी उनके चित्रों की एक प्रदर्शनी लगायी गयी थी और रॉयल नेपाल अकादमी ने उनके सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था।
कुमुद शर्मा एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी जानी जाती है। वे रत्नावली विद्या मंदिर की प्राचार्या थीं। उन्होंने बिहार की लोक गायिका बन्ध्यवासिनी देवी के गीतों पर आधारित बच्चों के नाटकों का मंचन किया और बाल रंगमंच, रेडियो नाटक लेखन एवं बाल नाटकों का निर्देशन भी किया। “चाचा की तस्वीर” और ”चोंच बहादुर” जैसे बाल नाटकों का सफल मंचन करने वाली कुमुद शर्मा की कला-वार्ता समय-समय पर आकाशवाणी से प्रसारित होती रही।
वे 1991 और 1993 में अकादमी ऑफ फाइन आर्ट, कलकत्ता से सम्मानित हुईं और युवा कलाकारों को प्रत्साहित करती रहीं। इस दिशा में उनका एक महत्वपूर्ण योगदान ‘जगत सेंटर फॉर आर्ट्स एंड कल्चर’ की स्थापना था, जिसे पटना की पहली व्यावसायिक कला दीर्घा कहा जाता है।
कुमुद शर्मा ने युवा कलाकारों को स्टूडियो की सुविधा भी उपलब्ध कराई। राज्य में कला का माहौल बेहतर बनाने के लिए निरंतर कार्य किया और विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी।