सीता देवी का जन्म 1914 में सहरसा के एक गांव बसहा के एक महापात्र ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चुमन झा और मां का नाम सोन देवी था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा अपने घर पर ही पायी। मां और नानी भित्ति चित्र बनाया करती थीं। उन्हीं से सीता देवी ने भित्ति चित्रण सीखा।
बारह वर्ष की आयु में सीता देवी का विवाह मधुबनी के जितवारपुर गांव के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में शोभाकान्त झा से हुआ। वहां भी उन्होंने भित्ति चित्र बनाना जारी रखा। 1962 में अकाल के दौरान सरकार की तरफ से कला के बदले आर्थिक मदद पहुंचाने मधुबनी पहुंचे भाष्कर कुलकर्णी की प्रेरणा से उन्होंने अपने भित्ति चित्र कागज में उतारने शुरू किये और फिर ताउम्र चित्रों के सृजन में लीन रहीं।
सीता देवी के मिथिला चित्रों में एक गजब का आकर्षण था जिसकी वजह से उन्हें हाथों-हाथ लिया गया। उनके चित्रों की लोकप्रियता ने धीरे-धीरे स्वयं को मिथिला कला की एक शैली के रूप में परिणत कर दिया। उनके चित्र हाथों-हाथ बिकने लगे। शुरुआत हुई भारतीय हस्तकला बोर्ड द्वारा आयोजित प्रदर्शनी से जहां उनके बनाये सभी चित्र बिक गये। उस प्रदर्शनी के बाद बंबई, अहमदाबाद, दिल्ली, कलकत्ता आदि शहरों में आयोजित प्रदर्शनियों में उनके चित्र बिकने लगे। दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित ग्राम झांकी में उनके द्वारा बनाये गये भित्ति चित्र को काफी सराहना मिली।
सीता देवी 1971 के बाद ज्यादातर दिल्ली में रहीं। 1971-72 में उन्होंने आई.टी.डी.सी. के चाणक्यपुरी स्थित अकबर होटल के मधुबन कॉफी शॉप की दीवारों पर चित्र बनाये, जो काफी लोकप्रिय हुए। इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा के वीआईपी गेट की अंदर की दीवारों पर भी उन्होंने मिथिला चित्र बनाएं।
विदेशों में भी सीता देवी ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। 1976 में उन्होंने वाशिंग्टन और न्यूयॉर्क में चित्र बनाएं, फिर बर्लिन में भी चित्र बनाए। 1989 में उन्हें जापान के निगाटा और तोकामाची शहर में मिथिला कला के प्रदर्शन का मौका मिला।
मिथिला चित्रकला में उनके योगदान के लिए बिहार सरकार ने 1971 से 73 तक श्रेष्ठ शिल्पी और दक्ष शिल्पी पुरस्कार से सम्मानित किया। 1975 में उन्हें भारत सरकार की तरफ से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और 1981 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1984 में उन्हें बिहार दिवस समारोह समिति, पटना ने उन्हें बिहार राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया।