मिथिला चित्रकला जिन कलाकारों के जरिए वैश्विक पटल पर उभरी, उनमें एक पद्मश्री जगदम्बा देवी हैं। उनका जन्म 25 फरवरी, 1901 को मधुबनी के भजपरौल में हुआ था और उनका सारा जीवन जितवारपुर में बीता, जहां वह कलाकर्म में तल्लीन रहीं।
1962 में अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड के कला पारखी एवं अन्वेषक भाष्कर कुलकर्णी मधुबनी पहुंचे और व्यावसायिक रूप से चित्र बनाने के लिए जिन पांच महिला कलाकारों का चयन किया, उनमें जगदम्बा देवी भी थीं। उन्होंने जगदम्बा देवी को चित्र बनाने हेतु हस्तनिर्मित कागज दिए। उन चित्रों की प्रदर्शनी बाद में नई दिल्ली स्थित सीसीआईसी में लगी, जिसे खूब सराहाना मिली। उसके बाद देश-विदेश के कला संग्राहक चित्र खरीदने, देखने जितवारपुर पहुंचने लगे।
जगदम्बा देवी द्वारा बनाये गये चित्र अनेक देशों में संकलित हैं। उनके बनाये कुछ चित्र साबरमती आश्रम में भी प्रदर्शित हैं, जिनकी विशिष्ट पहचान है। उन्होंने ज्यादातर चित्र धार्मिक कथाओं और पुराख्यानों पर बनाए, जिनका एक अलग ही रूप-विधान मिलता है। उनमें गहरे और हल्के रंगों का अद्भुत संयोजन मिलता है।
जदगम्बा देवी ने स्कूल शिक्षा प्राप्त नहीं की, लेकिन चित्रों के प्रति उनका नजरिया स्पष्ट था और चित्र बनाने की तकनीक अत्यंत ही प्रभावशाली। अपने चित्रों में उन्होंने प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया है, जिसमें लाल रंग की प्रधानता है। ऐसा कहा जाता है कि वह लाल रंग गोंद और बकरी का दूध मिलाकर तैयार करती थीं।
जगदम्बा देवी राष्ट्रीय पुरस्कार (1970) और पद्म पुरस्कार (1975) से सम्मानित पहली मिथिला चित्रकार थीं।
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