एक समय की बात है। चंपानगर में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। उस ब्राह्मण के सात बेटे थे। उसका सांतवां बेटा अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल के लिए अपनी पत्नी को घर पर ही छोड़कर कमाने के लिए परदेश गया हुआ था। एक दिन उस ब्राह्मण की बहू सबके भोजन-भाजन के पश्चात् बरतन मांज रही थी कि अचानक कुछ बच्चे एक सांप को खदेड़ते हुए आहाते में घुसे।
सांप सरसराते हुए वहां कपड़ों की ढेर में घुस गया जहां उस ब्राह्मण की बहू बरतन मांज रही थी। उसे उस सांप पर दया आ आई। वह बच्चों को डांटते हुए बोली, जाओ-भागो यहां से, यहां कोई सांप-वांप नहीं है। बच्चों के वहां से चले-जाने के बाद उसने जब कपड़े का गट्ठर हटाया तो देखा कि वहां पर सांप का एक छोटा-सा बच्चा दुबका बैठा है।
ब्राह्मण की बहू उस संपोले को एक बरतन में रखकर घर के भीतर ले आई। वह उसे अपने साथ ही रखती और रोज उसको दूध, लावा खिलती। समय बीतता गया और वह संपोला एक बड़ा नाग बन गया। एक दिन उस ब्राह्मणी से कहा कि अब वह वापस अपने घर जाना जाता है। ब्राह्मणी भी बोली कि हां, अब तुम्हें जाना चाहिए, क्योंकि मैं भी तुम्हें संभाल पाने में असमर्थ हूं। तुम इस छोटे से पात्र में कैसे रह पाओगे। अगर किसी ने तुम्हें देख लिया तो तुम मारे जाओगे, इसलिए मैं तुम्हें जंगल में छोड़ देती हूं, तुम वहां से चले जाना। इस तरह से उस ब्राह्मणी ने उस नाग के प्राणों की रक्षा की।
जब वह नाग अपने घर गया तो उसे पता चला कि वो नागराज वासुकि के बेटे थे। उसका एक भाई भी है। उसने अपनी मां वासुकियाइन और भाई को अपने बचपन से बड़े होने तक की घटना विस्तार से सुनाई। पूरी बात जानने के बाद वासुकियाइन कहती है कि उस ब्राह्मणी ने तुम पर बहुत दया की है। बदले में तुमने उसे क्या दिया। नाग कहता है, मैंने तो कुछ नहीं दिया। तब वासुकियाइन कहती है कि तुम फिर से उस ब्राह्मणी के पास जाओ और उससे पूछकर आओ कि उसे क्या चाहिए?
दोनों भाई उस ब्राह्मणी के पास पहुंचते हैं और उससे कहते हैं कि आपने मेरे प्राण बचाकर मुझपर बहुत बड़ा उपकार किया है। आप बताइए कि आपको उपहार स्वरूप में क्या दूं, आप जो कहेंगी वह आपको प्राप्त होगा। ब्राह्मणी कहती है कि आप सुरक्षित हैं, तो मुझे सब कुछ मिल गया। मुझे कुछ नहीं चाहिए। लेकिन, दोनों नाग भाई उनसे कुछ न कुछ उपहार लेने का आग्रह करने लगते हैं। वे कहते हैं कि मां ने कहा है कि कुछ न कुछ उपहार जरूर देकर आना, इसलिए आपको उपहार लेना पड़ेगा, आपको क्या चाहिए? ब्राह्मणी कहती है कि अगर आप नहीं मानते हैं तो मुझे नैहर दे दीजिए, मेरा नैहर नहीं है, मेरे मां-बाप इस दुनिया में नहीं हैं।
ब्राह्मणी की बात सुनकर दोनों नाग कहते हैं कि ठीक है, आज से आप हमारी बहन हुईं। चलिए, अपने नैहर चलिए। इस पर ब्राह्मणी कहती है कि नहीं, पहले आप दोनों भाई अपनी मां से पूछकर आइए। दोनों भाई अपने घर लौटते हैं और मां को पूरी बात बताते हैं। तब वासुकियाइन उस ब्राह्मणी को अपनी बेटी मानकर उसे अपने घर लिवाने की व्यवस्था करती है और दोनों नागों को खूब सारा धन वस्त्र मिठाई देकर कहती है कि जाओ, अपनी बहन को विदा करा लाओ। ब्राह्मणी इस तरह अपने नैहर पहुंचती है, जहां वासुकियाइन उसका अपनी बेटी की तरह आवभगत करती है और उसे कुछ दिन के लिए अपने पास रहने के लिए मना लेती है।
वासुकियाइन अपनी मानस बेटी को इस बात की हिदायत देती है कि इस घर से सभी खंड में जाना, लेकिन उत्तराखंड में नहीं जाना। वहां तुम्हारे पिता वासुकि नाग सोए हुए हैं। उस खंड में जाने से उनकी नींद में खलल होगी। ब्राह्मणी उत्तराखंड में जाने से परहेज करती है, लेकिन उस खंड में जाकर निरीक्षण की उसकी जिज्ञासा शांत नहीं होती है। एक दिन घर में किसी को नहीं पाकर वह चुपके से उत्तराखंड में चली जाती है। उत्तराखंड में एक जगह झुरमुट के पास जाकर वह आसपास ताक-झांक करने लगती है कि अचानक उसके पैरों के नीचे की जमीन हिलने लगती है। वासुकि नाग उनींदे फुंफकारने लगते हैं।
ब्राह्मणी इससे डर जाती है और वहां से भागकर अपने कक्ष में छुप जाती है। नागराज मानुख गंध-मानुख गंध कहते हुए, फुंफकारते हुए घर में घुसते हैं और वासुकियाइन से पूछते हैं कि मानुख गंध कहां से आ रही है। वासुकियाइन कहती है कि मानुख गंध कहां है यहां, नहीं है, यहां तो सिर्फ मैं हूं। वासुकि नाग कहते हैं कि नहीं, मानुख गंध है, वह कहीं छुपा बैठा है। वासुकियाइन उन्हें शांत कराते हुए फिर कहती है कि यहां कोई मानुख नहीं है, तो उसका गंध कहां से आएगा। आप नाहक परेशान हो रहे हैं। आप जाकर सो जाइए।
वासुकियाइन किसी तरह वासुकि नाग को शांत करके सोने भेज देती है और अपनी बेटी के कक्ष में जाकर कहती है कि बेटी मैंने तुम्हें कहा था कि सब खंड जाना, उत्तराखंड मत जाना। लेकिन, आज तुमने वह गलती की। अगर किसी दिन नागराज ने तुम्हें देख लिया तो वह तुम्हें डंस लेंगे और तुम मारी जाओगी, इसलिए अब तुम्हें अपने घर चले जाना चाहिए।
वासुकियाइन एक बेटी की तरह उसे खूब सारा दान-दहेज दक्षिणा देकर उसे ससुराल विदा करती है। विदा करने से पूर्व वह ब्राह्मणी को एक दीया देते हुए कहती है कि तुम इसे अपने घर में रोज जलाना। इसे कभी मुंह से फूंक नहीं मारना और उसे आंचल की हवा से बुझाना। दीपक बुझाने से पहले तुम नितदिन यह फैकड़ा पढ़ना – दीप दीपहरा जाहो घरा, मोती मानु भरो घरा, नाग बाढ़े नागिन बाढ़े, सीत बसंत भैया बाढ़े, सोना माना मामू बाढ़े, जेकरा देलक खीर, पहनीय चीर, आस्ति-आस्ति-अस्ति। यह फैकड़ा पढ़कर तब तुम दीपक बुझाना। ब्राह्मणी रोज यही फैकड़ा पढ़ती और तब दीपक को बुझाती।
ऊधर वासुकि नाग जब नींद से जागते, तब उस मानुख गंध का पीछा करते-करते ब्राह्मणी के घर तक पहुंच जाते हैं और उसे डंसने की ताक में लग जाते हैं। एक दिन जब वह ब्राह्मणी दीपक बुझाने जा रही थी, तो उसे डंसने के ख्याल से वासुकि उसके पीछे-पीछे आते हैं, लेकिन जब वह ब्राह्मणी को फैकड़ा पढ़ते हुए सुनते हैं तब ठिठक जाते हैं। वह सोच में पड़ जाते हैं कि यह ब्राह्मणी तो नाग वंश के गुण गाती है, मेरे ही परिवार का, पुत्र का गुण गाती है, मैं इसे कैसे मार सकता हूं।
वासुकि ब्राह्मणी को डंसने का विचार त्याग देते हैं और उसके घर से जाने से पूर्व अपनी पूंछ को उसके कक्ष में पटकते हैं, आंगन में पटकते हैं, दरवाजे पर पटकते हैं, जिससे ब्राह्मणी का घर सोने-चांदी और हीरे-जवाहरातों से भर जाता है। इस तरह से नागराज वासुकि ब्राह्मणी का कष्ट हर कर वहां से वापस अपने नागलोक चले जाते हैं।
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संकलन: मीरा झा, साहित्यकार, भागलपुर, बिहार।
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Other links:
नाग से विवाह: लोकगाथा बिहुला-विषहरी की उपकथा – एक
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