अथ गीत राजा सलहेसक: जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन

Shrine of Raja Salhesh, Chunabhatti, Darbhanga, Bihar © folkartopedia library
Shrine of Raja Salhesh, Chunabhatti, Darbhanga, Bihar © folkartopedia library

लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया की वजह से जाने जाने वाले डॉ. ग्रियर्सन ने 1881 में ऐन इंट्रोडक्शन टू द मैथिली लिटरेचर ऑफ नॉर्थ बिहार, क्रिस्टोमैथी एंड वोकैबुलरी पुस्तक लिखी, जिसमें राजा सलहेस की लोकगाथा पहली बार लिपिबद्ध मिलती है। ‘अथ गीत राजा सलहेसक’ शीर्षक नाम यह गाथा 21 खंडों में है। अपनी पुस्तक की भूमिका में ग्रियर्सन ने लिखा है;

“It (the song of Raja Salhesh) is most popular throughout the district amongst the low cast people, and is printed word for word taken down from the mouth of a Dom. Salhesh was the first Chaukidar, and is much worshiped by Dusadhs, a cast whose profession is to steal and to act as Chaukidars, preferably the former.

Throughout Tirhut, Salhesh Asthans can be seen under the village papal tree, composed of a raised mud platform surmounted by mounted figures made of clay, representing the various characters of the song. Here the Dusadhs worship him.

Although a song, it is written in prose and is chanted, rather than sung. Note that, throughout, Transitive Verbs in the past tense frequently take inflections with properly belong only to Neuter Verbs.”

ग्रियर्सन द्वारा लिपिबद्ध लोकगाथा ‘अथ गीत राजा सलहेसक’ इस प्रकार है-

खंड-1: भेल भिनसरवाठाढ़ि दरबाजा गै मालिनी कर जोरि मनती करै छथि देव मुनिक नाम, सुनु इन्दासन छपन कोटि देवता जे इन्द्र जनम देलैन्हि छठि राति सोइरीघर में ताहि दिन लिखि देल सलहेस सन बर। हुनक कारण अचरा बान्हलि पर पुरुष मुंह नहि देखलि, जनम पाए सिन्दुर नहि पेन्हलि। हुनि स्वामीक कारण कांच बांसक कोहवर बान्हलि, रचि रचि लाली पलंग सेज झारि ओछाओलि, हुनका कारण। सिकिया चीरि बेनिया बनाओलि स्वामी कारण। गौरी आओत ना।

खंड-2: हाहा गे। भेल भिनसरवा, कोइलि बोलइत, दरबजबा ठाढ़ि, कल जोरि मिनति करै छथि छपन कोटि देब केर नाम पर। सुनु इन्द्रासन लोक छठि राति जाहि दिन जनम देलैन्हि सोइरी घरमे ताहि दिन लिखि देल सलहेस सन बर। बालपन अचरा बान्हलि, परपुरुष मुंह नहि देखलि, जनम पाए सिन्दुर नहि पेन्हलि। हुनका कारण कांचे बांसक कोहवर बान्हलि, लाल पलंग सभरंग सेज ओछाओलि, सिकिया चीरि बेनिया बनाओलि। गौरी आवत।

खंड-3: नान्हिटासं पोसलहुं, एतेक वस्तु आनिके घरमे रखलहुं, तैओ न स्वामी सलहेस ऐलाह। हुनका कारण फूलबाड़ी रोपलि, रंग-रंग फूल आनिल लगाओलि, बेली फूल, चमेली, ओ बुलकुंज, नेवार तेखरिक फूल फूलबाड़ी लगाओलि, हुनि सलहेसक कारण सांची बीड़ा पान लगाओलि, मेदनी फूल गांजा आनि लगाओलि, तैओ सलहेस मोरंग नहि आएल। बिना पुरुष सै कौना दिवस गमाएब, एहि सोग सन्तापसं तेजि दितहु मोरंग राज, देस पैसिके स्वामी तकतिहुं। स्वामी सलहेस जो मिलतथि, स्वामी सलहेस लेल राज भोगितहुं, नहि मिलताह हिआ हारि घुरब, सकोग सनताप सौं पानी धसि खसबस फेर पलटि मोरंग नहि आएब। जनम सों गहना गढ़ाए राखलि कहिओ नहि पहिरलि, आइ मन होइअछि जे गहना पहिरि ऐनामे देखितहुं, जे केहन लगै अछि, सूरति।

खंड-4: गहना पहिरि बैठलि मालिनी सुरखी देखै ऐनामे। बड़ सुन्दर लगै अछि एक रती सिन्दुर कारण मांग उदास लगै अछि। तखन दमसि उठलीह घरसं, बिलकुल गहना खोंइछा बांधलि, घरसं चलि भेलि मालिनी। नगर गुजरात तेजि देब, जहां भेटताह स्वामी सलहेस देस पैसि ताकब, जौं कतहुं मिलताह स्वामी, तौं लैक आएब मोरंग राज, नहि मिलताह हिआ हरि लौटब लोंग संतपासं बुड़िके मरब।

खंड-5: भोर होइत भिनसरवा कनैति घरसं बाहर भेलि, चारू दिस ताकथि, बाट ठाढ़ि पचताबथि जे नहि भेटै बाट बटोही, नहि भेटै संग-समाज ककरा दिआ समाद पाठाएब। हिआ हारिके चललीह मालिनी कनैत चललीह मालिनी स्वामीक उदेस। डेगे डेगे चललीह, जोजनभरि आए जुमलीह अपना फूलबाड़ी में। हुनक कानब सुनि संग-समाज सखी बहिन भोर होइत आइलि हुनका फूलबाड़ी, तखन जाए पुछबहुन्हि सखीकं जेन कोन बेड़ा है फूलबाड़ीमे कानब, की हुनक माए बाप गारी देलक, की परोसिआ उलहन देलक ताहि विरहं ऐलीह फूलबाड़ी।

खंड-6: तखन पूछै छथिन्ह चम्पा जे की जानि घरसं बाहर भेली। तब कहै छलथिन्ह दौना मालिनी एक सलहेसक कारण घर तजलहुं, घर तेजि स्वामी सलहेसक कारण चललहुं। पांचो सखि चलली कमला घाट जे कमला घाट मे स्वामी सलहेस हाथी नमावै औताह, ओहिठाम जं मिलताह स्वामी सलहेस तं लाएब जादू सं लोभाए। आनि अपना फूलबाड़ी मड़वा बान्हि बिआही देब, तोहरा छाड़ि कोनो सखी नहि द्रिष्ट रोपब, तील कुश लै उसरगि देब। तं पांचो बहिनि चललीह कमला घाटमे, चारू दिस बाट ताकथि जे कोनो दिससं सलहेस औताह। तखन चीर उतारि तेहठाम राखलि तेल फूलेल कमलामे भसाए देलि।

खंड-7: कमलामे भसाए कल जोरि मिनति करै अछि, जे जलदी सलहेसकं मंगाए दिए जे दरसन होए। पांचो बहिनी एतवा कहिके कमलामे डूब देलैन्हि। आसन डोलि गेल। छपन कोटि इन्द्र देवता जाए के पैठल जहां बैठल कचहरीमे तहिठाम, उदमत लगाए देल। सबटा हाल कहि देल सलहेसकं, तोहरे कारन पांच सखी बारह बरस अचरा बान्हि, आवै कहब कमला घाट स्वामीसं दीदार हैत। एतबा समाद सलहेसकं गेल अछि, सलहेस कहम अछि, जे हम नहि जाएब, सुगा पठाए बेदुली मंगाए इआरकं सहिदानी देखाए देव। तखन एतवा खबरि सलहेसकं भेल अछि लगले हुकुमक कदेल झिनमा खवास कैं डेउढ़ी सौं सुगा आनि दे, झिनमा खबास गेल अछि, लगले सात खंड देउढ़ी पंजरा टांगल जाए, झिनमा खबास पिंजरा उतारल तं पिंजरा उतारि लाएल, बीच कचहरी सलहेसकं आगा राखल, सुगा बहारके सुगवा उड़ाए देल। तर तेजल धरती उपर आसमान बिजली परती सुगवा देऐ चकभाउर चलि गेल कमलाघाट। पांचो बहिनि कमलामे खेलाए धमाउर उपरमे सुगा देऐ चकभाउर। चारू दिस नजरि खिड़ाबै, खन कनडेरिएं सुरखी परेखे, खन दृष्टि गेदुली पर देऐ ऐसनि झपट मारै सुगवा बेदुलीले भागल दौना मालिनीक मांगक लैल भागल। सुगवा धैल पकड़ियाक बाट जाइत जुमल साखु बन, जुमल पकड़िया राज कचहरी दुनु इआरके बीचमें ओनके ओन दै बेदुली नेड़ाए देल। बेदुली देखि बहुत मन छगुलक जकर बेदुली लाएल तकर तिरिया केहन सुरखी।

खंड-8: कहथि सलहेस, सुनह सुगा, जकर बेदली लैलाह से जे पिचौर करै तं धरम करम नहि बचतै से नहि, जाए बेदुली सखु बन पहुंचा दहक। जाए सुगवा सखु बन पहुंचल, असोक केर गाछपर बैठल। पांचो बहिनि तकैति हिआ हारुनी भेलि, जाइत चारि बहिनि घुरलीह हिआ हारिक, दौना मालिनीकं, कुसोथरि देलि अछि, होइत भोर सुग्गा उड़ल आबिके बेदुली देल अछि दौना मालिनीकं लिअ मालिनी अपन बेदुली, जाए मोरंग राज फूलबाड़ीमे बैठब, हम सलहेसकं पठाए देब।

खंड-9: पलटि ऐलीह मालिनी अपना फूलबाड़ी। होइत भोर सलहेस पहुंचल, राति बिराति जाए जुमल मोरंग राज फूलबाड़ी, होइत भोर सलहेस आएगा फूलबाड़ी।

खंड-10: भेल भिनसरवा बोलल कोइलि। उठलीह मालिनी फूलडाली लेने फूलबाड़ी ठाहि फूल तोड़ि गूंथलि गृमहार सलहेस ला। ताहि बेरि जुमल अनदेसिया जोर। चुहड़मल मोकामागढ़सं। दिन दुपहरिया घर-घर फिरै, पकड़िया टेबने फिरै, पकड़िया चुहड़मल योग हलेबी नाहि मिलै, कतैत मिलल राजा भीमसेनक डेउढ़ी। डेउढ़ी टेबि चलल चुहड़मल दुइ चारि कोश अंतर जगलमे डेरा खसाओल। सुमिरै लागल देवि असावरि घरक गोसाउनि। जनमसं पुजलहुं मोकामागढ़मे, कहिओ जन्मभरहि चोरी नहिं कैली, सुनन पकड़ियामे ननुआ सलहेस जन्म लेल, बड़ योगमन्त, चौदह कोस पकड़िया कोतबाली लिखाओल, हुनक डाकसं ककरो टंगरि साबित नहि होइ अछि जे हुनका पहरामे चोरी करै।

खंड-11: से जानि चुहड़मल चढ़िके आएल, झांटीक केस बांधल। दोहरि चरना चढ़ाओल, लाख दर लाख छुड़ी गतरमे बान्धल, कमरे ढ़ाल बान्दल। पेस्तर छूड़ी लेल हाथके, बैठल धरती मे। आसन लगाएके, देल पेटकुनिया धरतीमे, सेन्ह काटै लागल, सेन्ह काटि पहुंचल चुहड़मल जाहिर घरमे रानी हंसावती सूतलि सोनाक पलंगपर मुनहर घरमे, तहिठाम घरमे पहुंचल चुहड़मल चोर। हुनका सिरमामे सेन्ह फुटल जाए, चुहड़मल पलंग औठंघि बैसल। जाति दुसाध परतीत नहि करैए, मुड़ी उठाएके घरमे ताकै माल, कोनो माल नहि मिलल, देखल हंसावती सूतलि सोनाक पलंगपर, लाख दर गहना गतरमे। तकरा तजबीज करै चुहड़मल जे कोन चीज लेब। दुइ चीज लेब, सोनाक पलंग ओ रानीक गराक चन्द्रहार लेब। एतवा कहैतमे भनसरवा भेल, ताहिसं चन्द्रहार रानीक गराएं कोटि लेल, ओ रानीके उठाएके भीमसेनक खटियापर देल, ओ सोनाक पलंग माथापर रखि लेल।

खंड-12: होइत भिनसरवा भागि चलल ओहि सेन्ह दै, चारि कोसक तर दै ऊपर भेल जंगलमे। लगले मोसाफिरक भेस पकड़ि लेल, माल जोर बर जोर लेने जाइ अछि मोकामागढ़मे, जाइत गंगाघाट त्रिबेनिया पहर दीन उठैत गंगा पहुंचल। तब कहैत अछि गंगासं ‘सुनह गंगा। चोरिकै आएल छी, परबत राजं राजा भीमसेनक गढ़सं ओ सलहेसक पहरासं लेने जाइ छी। कहिओ काल चढ़ै मुदै सलहेस तकरा पार मति करह, जाहि घड़ी पार करब हम सुनब आबिके धर्मक बांध बांधि देब।’ एतबा कहि गंगा पार भै गेल ओहि पार मगहमे चलल मोकामा गढ़मे, सात खंड डेउढ़ी बीच में गाड़ल। ताधरि रानीक घरमे नींद नहि टूटल, केओ नहि जागल, डेउढ़ीमे सभक पहिले सलखी नौड़ी जागलि।

खंड-13: बाढ़नि लेने अंगना बहाड़ि ओसरवामे ठाढ़ि भेल, तजबीज कैर बिना पुरुषकं त्रिआ एतेक बेरि धरि सूतलि, तखन नड़ाय देलि बाढ़नि, धाए पहुचलि अन्दरात, केवाढ़ खोलि जगाए देलि हंसावती रानीकं उठू रानी एहन बज्र नीन्द भेल, कोन चोर आबि घर सेन्ह देल, एतैक कहैति मे रानी उठली हंसावती, रानी सेन्हदेखि गर्द कैल। ततबा बेरिमे दौड़ल बिलकुल नोकरिया, दौड़िके घेरल चारू दिस डेउढ़ी, ताकै चोरक बनार कतहुं नहि मिले। ताखन कानै लगलि हंसावती रानी, राजाक नमा पर कानै लागलि, तखन कानि-कानि अचरा फारि कागज बनाओलि, नैनाक, काजर पोछिके मोसि बनाओलि, तखन बमा कनगुरियां चीरि कमल बनाओलि, लिखै लागलि। चोरीक हाल कहि देब राजा भीमसेनकं। एतए गढ़में री भेल, जनमक चौकीदार थिकाह सलहेस, हुनका कहबैन्हि जे चोर माल हाजिर करै, तौ लागि हुनका फुरसति नहि, एतेक चीठी लिखि सुदीन कै कहलि खवास मगाय लेलि, तकरा दिया चीठी राजा भीमसेनकं पठाय देलि।

खंड-14: होइत दुपहरिया चीठी पहुंचल राजाक पास। राजा भीमसेन चीठी देखि तमसाएल, लागे हुकूम देल बिलकुल बनौधिआक जे पकड़ि लाबह सलहेसकं। तखन दौड़ल बिलकुल बनौधिया, सलहेस नुकाए गेल, कतहुं नहि मिलल सलहेसक भांज। तखन पकड़िया ताकल, झील हील ताकल, तरेगना पहाड़ तालक, कतहुं न मिलै सलहेस भांज। हिआ हारि बैठल परतीक खेतमे, झखै लागल, ताहि बिरे में एकटा बुढ़िया बटोहिनि आबि गेलि, से पुछै लागलि जे एतेक बनौधिया कथी लै झखैत छी, तखन बनौधिआ कलह जे सलहेसक भांज बताए दे। तखन बुढ़िया कहै लागलि जे एकठाम हम देखलि सलहेसकं कलालक भट्टीपर दारू पिबैत, गांजा मलैत, करिया पगड़ी माथमे लालकी लाठी हाथमे, घोरूआ मांटी देहमे। एतेक सुनल बिलकुल बनौधिआ दौड़ल सलहेसकं पकड़े, चारू दीससं घेरि लेल कलालक भट्टी, तखन जाए पकड़ि लेल ओ मुसुक बांध बान्हि देल। तब पूछै लागल सलहेस बनौधिआके जे कोन जिआन भेल अछि जे हमरा बांधि देल अछि, से हाल कह। तखन कहै अछि बनौधिआ जे चलह कचहरी, राजा भीमसेन कहताह हाल, हम नहि जानी। आगा पीछा बनौधिआ बीचमे सलहेस के लेने जाए जुमल कचहरी, दाखिल कै देलक कचहरीमे, कल जोरि सलाम कैल बिलकुल बनौधिआ लिख समुझाय अपन बन्धुआ।

खंड-15: तखन कल जोरि कै ठाढ़ि भेल सलहेस, जन्म सं नौकरी कैल कहिओ फूलक साटी न लागल, आइ कोन बिखै भेज जे बन्धुआ बान्हि देल। तखन राजा भीमसेन हुकुम देल जे तोहरा अछैत घर में चोरी भेल, चोर माल पकड़ि कै हाजिर कै दह, तखन तोहरा फुरसति देबहु, बीचमे नहिं देबहु। तखन कहैत अछि सलहेस जे चौदह कोस पकड़िया चौकीदारी लिखाओल, चोरक बनार नहिं पाओल, आनू कागज जे चोरीक माल गेल अछि तकर तमसुक लिखि देब, जन्म-जन्म साधन कै देब, चोर माल हमर सक नहिं थीकि। तखन जनसं खिसिआएल राजा भीमसेन, देल हुकुम बनौधिया के लै जाह सलहेस के, उनटा बांध बांधि देब, नौ मन ढेंग उपर कै देब, काचे बांच के फठा सौ पीठि ओदारि देब, जाति दुसाध कबुल नहिं देब। तखन परल संकट मे सलहेस, तखन कानै लागल सलहेस, जे आब प्रान नहिं बांचत, आखिर मरना, अंकुर मेटल नहि जाएत, भाइ सहोदर मोतीरामसं बेंट नहि बेल, बिआही स्त्री सं भेंट नहि भेल, माए बुढ़िया धरि सौं भेट नहि भेल। सुमिरै लागल असाबरी घरक गोसाउनिकं जे जाएकै उढ़री तिरिया सतबरती दौना मालिनी होइत सूतलि फूलबाड़ी मे पलंगपर तकरा जाए कहब संवाद आबि कै कचहरी मे भेंटकै जाए।

खंड-16 एतबा सुनि दौना मालिनी उठलि चिहाए, ठाढ़ि भेलि दरबाजा पर गाइक गोबर लै सवा हाथ धरती नीपि लेलि, सभ देव मुनिक नाम अरोधि कं सुरजक माथे सगुन उचारै लागलि। सुरुज सांचे-सांचे सगुन उचारि दह जे कोन राज चोर बसैत अछि, केकर बेटा, केकर भगिना, की चोरक नाम थीक एतैक हाल कहि दह। तखन एतेक सुनि कै उठलीह मालिनी, जुमलीह फूलबाड़ी मांझ, सोलहो सिंगार पेन्हि लेलि, जादूक फूलडाली बन्धाए लेलि फूल तोरै लगलि, रंग-विरंगक फूल तोड़ि लेलि, कांचे नौंग अराची तोड़ि लेलि। चललीह स्वामीक उदेस, जाए जुमलीह कचहरी मांझमे। कल जोरि मिनती कहैत अछि, राजा भीमसेन के कहै लागलि, जे बड़ सुकुमार हमर स्वामी, मारि सहल नहि जाइ छैन्हि, कनिएक बन्धन खोलि दिअ, जहां सौं होएत तहां सौं चोर माल हाजिर कै देब। ताहि पर तमसाएल दीमान जे त्रिआक जाति कहां से लैब चोर माल, जों लागि हाजिर करबं नहि, तो लागि फूरसति नहि देबौक। तखन राजा भीमसेन कहैत छथीन्ह जे बन्धन कोलाए दबौक, एक एकरार हमरा पास लिखि दह जे आठम दिन चोरमाल हाजिर करी, नहिं हाजिर करी तौ नौम दिन तोहरासं विवाह करी, तकर एकरार लिखि दाखिल करह, ओ लिखाए लेल। दौना मालिनी कहै लागलि जे सात दिन में चोर माल पकड़ि कै हाजिर कै देब, से दूनू तरफ एकरार भै गेल।

खंड-17: तखन उठलीह मालिनी सलहेसक बन्धन खोलै लागलि अपने हाथसं, आगा पाछा बिदा भेल। तखन सलहेस पुछे छथीन्ह मालिनी सं जे की कहिकै हमरा बन्ध खोलौलिंही। तखन मालिनी कहै लागलि जे अपन इजतिक एकरार लिखि आठ दिनक अन्दर जे चोर माल आनि देब ओ हाजिर कए देब, तखन अहांकं खोलाओलि अचि। तखन सलहेस कहैत छथीन्ह जे कोन चोर थिक, तब मालिनी कहै लागलि जे चुहड़मल मोकामागढ़मे बसैत अछि, जगतक भागि थिक, वैह चोराए कै लै गेल अछि। करू पैरूख सलहेस जे चोर माल पकड़िकै लै आबह, ओना नहि पकड़ल जाएत भेद बताए दैत छी जे नाउ नटक टोल , जाए कै सभटा वस्तु मंगनि मांगि कै ढोलक, मुगदर, खनती, झीलम, खटिया, माचिआ, सिरकी भैंसा लै आबह। सलहेस तखन मंगनी मांगि के लै आएल, सलहेस मालिनी कै पास सपुर्द कै देल। तखन कहैत छथीन्ह दौना मालिनी ई सभ भेद आओर बता दै छी, मथाक टीक मुड़ाए दिअ, जुलफी रखाए लिअ, तसरक धोती काछ लगाए लिअ, उत्तम रंग ताखी मूड़ बैठा लिख, घोरूआ माटी गत लगाए लिअ, दुइ चारि दण्ड लगाए लिअ, जे असले नटक भेस लागे।

खंड-18: तखन दौना मालिनी दछिनक चीर पहिर लेलि, पाटी समारि लेलि, नैना काजर पेन्हि लेलि, सीके-सीके मिसी बैठाए लेलि, चोली पहिर लेलि, हाथमे बांक पहिर लेलि, पैर मे काड़ा पहिर लेलि, मांग मे तारचन्द टिकुली पहिर लेलि, असले कसबीन भेलि। दुनु आदमी आल्हा गावै लागल, आल्हा सुनि कै मोरंगक लोक चौतरफी घेरि लेल, देखै लागल तमासा, चिन्हले लोग अनचिन्ह भै गेल, तखन ओहिठाम सौं डेरा उठाए देल, तखन चलल चोर पकड़ै, पहुंचल गंगाघाट पर। ता मं सुनलन्हि गंगा सलहेसक अबाइ, घाटे-घाटे नाओ डुबाइ, अपने ब्रहमनीक रूपधै कंगनिया चढ़लि। गेल गंगाक लगमे जे तकहु नाओ दिअ बताए जे पार उतरि कै जाएब ओहि पार। तखन गंगाजी कहै लगलथीन्हि जे नाओ गेल भसिआ, तों फीरि कै घर अप्पन जाह, घर हम नहि फीरिके जाए, सुखले नदी पार भै जाएगा। गरक चन्द्रहार उतारिके जलमे राखि देलि, ताहिरपर चढ़ि लेल नट नटिन, पार उतरि गेल मगह में। मगहसं मुंगेर जुमल, राति विराति बलबे पहुंचल, मोकामा गामे मे। गाछी ताकिकै रा खसाए देल, तभन सभ वस्तु टांगि देल, सिरकी तानि देल।

खंड-19: तखन अपने बैठल सलहेस, अपने नटिन चचलीह भरि मड़हरबा लै गामपर हरबा बेचै, ले गे गिरथाइन हरबा ले, तखन हरबा बेचैति-बेचैति पहुंचलि चुहड़क दरबाजा पर। सात नीन्द सूतल सात खण्ड डेउढ़ीमे अपने मालिनी ठाढ़ि भेलि दरबाजा पर, जादू सं देलि जगाए। बक दै उठल चेहाए, सातो खण्ड केवाड़ खोलि कै दरबाजापर आएल, पूछै नटनिकं जे कथीला एलीह दरबाजा पर। जाति के हम नटिन थिकहु, दुई चारि पैसा खातिर हम एलहुं दरबाजा पर। तखन चुहड़मल कहैत छथिन्ह जे हमरा घरमे नहि माए, नहि बहीन, नहि इस्त्री, तखन हमरा सौं की लैबे ओजह इनाम। तखन बोले लागलि नटिन राति हम सूतल छलहुं अप्पन सिरकी मे, सपना में देखलि जे तोहरा घरमे एक चन्द्रहार छहु, से इनाम दह हमरा तब तोहरा मन पुराएब। तखन खुबसुरति देखि चन्द्रहार आनि देल जे हम चोरी कै लैलहुं केओलागढ़ सौ, राजा भीमसेनक घरसे, सलहेसक पहरा सौं से तोरा इनाम दैत छी। चलू, अपना सिरकी में ओहि पलंगपर मन पुराए देब। आगा माथापर पलंग, पाछू नटिनिआ गेल अपना सिरकी मे।

खंड-20: तखन अपने बैठल सलहेस, अपने नटिन चचलीह भरि मड़हरबा लै गामपर हरबा बेचै, ले गे गिरथाइन हरबा ले, तखन हरबा बेचैति-बेचैति पहुंचलि चुहड़क दरबाजा पर। सात नीन्द सूतल सात खण्ड डेउढ़ीमे अपने मालिनी ठाढ़ि भेलि दरबाजा पर, जादू सं देलि जगाए। बक दै उठल चेहाए, सातो खण्ड केवाड़ खोलि कै दरबाजापर आएल, पूछै नटनिकं जे कथीला एलीह दरबाजा पर। जाति के हम नटिन थिकहु, दुई चारि पैसा खातिर हम एलहुं दरबाजा पर। तखन चुहड़मल कहैत छथिन्ह जे हमरा घरमे नहि माए, नहि बहीन, नहि इस्त्री, तखन हमरा सौं की लैबे ओजह इनाम। तखन बोले लागलि नटिन राति हम सूतल छलहुं अप्पन सिरकी मे, सपना में देखलि जे तोहरा घरमे एक चन्द्रहार छहु, से इनाम दह हमरा तब तोहरा मन पुराएब। तखन खुबसुरति देखि चन्द्रहार आनि देल जे हम चोरी कै लैलहुं केओलागढ़ सौ, राजा भीमसेनक घरसे, सलहेसक पहरा सौं से तोरा इनाम दैत छी। चलू, अपना सिरकी में ओहि पलंगपर मन पुराए देब। आगा माथापर पलंग, पाछू नटिनिआ गेल अपना सिरकी मे।

खंड-21: ता में सलहेस सिरकी तजि देल, लाबै गेल अपना भाई मोतीराम ओ भगिना कारीकन्तु, सात सौ हाथी मकुना लै आबि के सिरकी घेरल। ता मे नटनिया पलंग ओछाए देलि, ताहिपर चुहड़मल कै तेल फुलैल दै सुताए देलि। ता मे फरीछ भेल, जुमल सलहेस सभ लसकर लै, धरि लेल सिरकी बीचमे चुहड़मल सूतल। देवी असावरी देलि जगाए जे त्रिआ कारन मुदै तोर जुमल सलहेस। एतबा कहैत चिहाए, दोहरि काछ लगाए भै गेल ठाढ़, छुड़ी लेल हथवा, एक बेरि छरपल चुहड़मल उपर उड़ि गेल सौ पचास हाथ, खसल हाथिक हलकाक बाहर, लड़े लागल सलहेस सं। चुहड़मल जहिना पैसे बकरी में हुड़ार, तहिना छरपल फिरे चुहड़मल, जेम्हर छरपै तेम्हर हाथी कटिते जाएस सात सै मकुना कै एकदम सों काटि देल, तीनि राति दिन परल लड़ाइ, तखन तीनू बापूतके खेहारने फिरै परतीक खेत मे। उठलि नटिन, पकड़लि चूहड़मलक बांहि, हम जातिक कसबीन, हमरा लग कतेक मोसाफिर अबैथ अछि, तकरा सभ सौं लड़ने हमर रोज हरज होइत अछि, खीस तेजि दह, चलह सिरकी मे मन पुराए देब। चुहड़मल सिरकी मे आवि कै पलंग पर रहल सूति। नीन्द अहिद्रा राखि देल, चाल कैलि राजा सलहेस के और मोतीराम कैं आवि कै अप्पन मुदै बान्हू।

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