लोकगाथा: रेशमा – चूहड़मल (कथानक)

Idol of Chuharmal in a shrine in Mokama, Bihar. Image credit: Deshkal Society.
Idol of Chuharmal in a shrine in Mokama, Bihar. Image credit: Deshkal Society.

चूहड़मल का जन्म मोकामा टाल के अंजनी गांव में हुआ था। उसके पिता का नाम बिहारी दुसाध था। चूहड़मल जिस पाठशाला में पढ़ते थे, उसमें अजब सिंह नाम का एक लड़का भी था जो भूमिहार जाति का था। अजब सिंह से चूहड़मल की दोस्ती हो गयी थी। एक बार जब कई दिनों तक अजब सिंह स्कूल नहीं आया, तब चूहड़मल उसे देखने के लिए उसके घर गया। बीमार अजब सिंह से मिलने जब चूहड़मल उसके घर पहुंचा, तब अजब सिंह की बहन रेशमा, जो अत्यंत खूबसूरत थी, वह चूहड़मल के आकर्षक व्यक्तित्व पर रीझ गयी। रेशमा की प्रेम आसक्ति चूहड़मल पर हो गयी। फिर रेशमा चूहड़मल से मिलने के लिए आतुर रहने लगी और उसके लिए नाना प्रकार का यत्न करने लगी।

चूहड़मल प्रतिदिन मोकामा घाट पर स्नान के बाद महादेव मंदिर पूजा के लिए जाते थे। रेशमा ने वहीं चूहड़मल से मिलने और अपने प्रेम का इजहार करने की ठान ली। उसने सोलहों श्रृंगार किये और सोने का घड़ा और रेशम की डोरी लेकर महादेव मंदिर के पास स्थित कुएं से पानी लाने के लिए चल पड़ी। घर में उसकी मां और भाभी ने महादेव कुएं से पानी लाने की बात पर उसको खूब समझाया-बुझाया, लेकिन वह नहीं मानी। पानी भरने के बाद रेशमा महादेव मंदिर पहुंच गयी, जहां चूहड़मल आने वाला था। उस दिन चूहड़मल वहां नहीं आये। वह घर में सोये रह गये।

रेशमा इंद्रदेव का स्मरण करते हुए उनसे प्रार्थना करने लगी कि वह इतनी बारिश कराएं ताकि चारों तरफ पानी ही पानी भर जाये। इंद्र भगवान ने उसकी पुकार सुनी और मूसलाधार बारिश होने लगी। पूरा इलाका पानी से भर गया। चूहड़मल के घर में भी पानी घुस गया। तब देवी दुर्गा सोये हुए चूहड़मल को जगायीं और रेशमा के प्रणय प्रतिज्ञा के बारे में पूरी बात बतायीं। उन्होंने यह भी बताया कि रेशमा के प्रणय प्रतिज्ञा की वजह से ही घनघोर बारिश हो रही है। चूहड़मल देवी दुर्गा से कहता है कि वह तो रेशमा को अपनी धर्म बहन मानता है, उसका प्रणय निवेदन वह कैसे स्वीकार कर सकता है?

चूहड़मल ने सूर्य भगवान से धर्म रक्षा की गुहार लगायी। सूर्यदेव द्वारा साथ देने का वादा पाकर चूहड़मल कोढ़ी रूप धारण कर रेशमा के समक्ष उपस्थित हुआ। जब रेशमा ने उस कोढ़ी का नाम-पता पूछना शुरू किया, तब चूहड़मल की सच्चाई सामने आ गयी। रेशमा के द्वारा पहचान लिये जाने के बाद चूहड़मल सूर्यदेव की आराधना कर अपने पूर्व रूप में चले आए। चूहड़मल की सुंदरता और यौवन देखकर रेशमा मूर्छित हो गयी। मूर्छा टूटने के बाद वह चूहड़मल से प्रणय निवेदन करने लगी, भोग विलास का जीवन जीने के लिए उससे विनती करने लगी, लेकिन चूहड़मल ने उसका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। वह रेशमा से बोला कि तुम्हारा भाई अजब सिंह मेरा दोस्त है, इस नाते तुम मेरी धर्मबहन हो और बहन के साथ प्रेम संबंध कायम करना अपराध है। चूहड़मल किसी तरह रेशमा से पिंड छुड़ाकर अपने घर आ गये।

रेशमा, चूहड़मल को प्रणय-सबंध के लिए राजी करने का उपाय खोजने लगी। उसने आर्थिक नाकाबंदी की नीयत से अपने पिता से यह आदेश जारी करवा दिया कि जिसकी गायें रात को चरने आएंगी, उसके मालिक को मार दिया जाएगा। राज्य के दो व्यक्तियों रामजीत गड़ेरी और मुंडे खां को पहरा पर नियुक्त कर दिया गया। संयोग से चूहड़मल की गायों को लेकर उसका भांजा बुधुआ आधी रात को चराने निकला। रामजीत और मुंडे खां बुधुआ को मारने के लिए दौड़े। तब पीछे से आ रहे चूहड़मल ने अपनी तलवार से गड़ेरी और मुंडे खां का सर कलम कर दिया। यह खबर आग की तरह फैल गयी।

रेशमा के पिता जो मोकामा के राजा थे, उन्होंने इस घटना को राजा के आदेश का खुला उल्लंघन मानकर यह आदेश दिया कि मोकामा टाल के जितने भी दुसाध हैं, सबको मार डाला जाये। रेशमा के हस्तक्षेप पर उन्होंने इस घटना पर निर्णय का अधिकार अजब सिंह को दे दिया। अजब सिंह के आदेश पर कालिका सिंह चूहड़मल के पिता और चाचा को गिरफ्तार करने चला। इधर रेशमा चूहड़मल से मिलने के लिए बार-बार यत्न कर रही थी। वह गंगा किनारे चूहड़मल के गंतव्य पर पहुंची। चूहड़मल आसन लगाकर ध्यानमग्न हो पूजा में तल्लीन थे। रेशमा ने चूहड़मल से कहा – हे चूहड़मल, मैंने तुम्हारे लिए क्या-क्या नहीं की, पूजा की, व्रत की, आप मेरे हो जाइये। उसके बाद रेशमा चूहड़मल को पकड़ने के लिए आगे बढ़ी, लेकिन चूहड़मल वहां से बचकर निकल जाते हैं।

बार-बार अपने प्रणय निवेदन के ठुकराए जाने से रेशमा चूहड़मल पर क्रोधित हो जाती है। वह चूहड़मल को सजा देने के लिए योजना बनाती है। वह अपने घर के कमरे में पहुंचती है और अपने कपड़े फाड़कर पलंग पर लेट जाती है। परिजनों के द्वारा कपड़ा फटे होने का कारण पूछने पर वह कहती है कि चूहड़मल ने अपनी वासना की पूर्ति के लिए उसके साथ ऐसा व्यवहार किया है।

यह सुनकर अजब सिंह का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया। इधर कालिका सिंह चूहड़मल के पिता बिहारी और चाचा रामा को पकड़कर दरबार में ले आया। चूहड़मल द्वारा रामजीत गड़ेरी और मुंडे खां की हत्या और रेशमा के साथ उत्पीड़न के अपराध में बिहारी और रामा को जेल में डाल दिया गया और अंजनी गांव के लिए पलटन भेज दी गयी।

चूहड़मल इन बातों से बेखबर सो रहे थे। तब देवी दुर्गा उसके स्वप्न में आकर सारी बात बताती हैं। चूहड़मल जब जगते हैं तो देखते हैं कि पलटन उनके पूरे गांव को घेर चुकी है। चूहड़मल मां दुर्गा का स्मरण करते हैं और मां दुर्गा से तेग लेकर चूहड़मल पलटन से युद्ध करने लगते हैं। राजा के आधे सैनिक मारे जाते हैं और आधे भाग जाते हैं। उसके बाद चूहड़मल मोकामा किला में कैद अपने पिता और चाचा को छुड़ाकर घर ले आते हैं।

सैनिकों की पराजय और चूहड़मल द्वारा मोकामा किला से अपने पिता और चाचा को छुड़ाए जाने की खबर से अजब सिंह स्वयं सैनिकों का नेतृत्व करते हुए अंजनी गांव पर हमला बोलता है। चूहड़मल और अजब सिंह की फौज के बीच खूब घमासान होता है जिसमें राजा मारा जाता है। अजब सिंह चूंकि दोस्त था इसलिए चूहड़मल उसे जीवनदान देते हैं।

इस घटना से रेशमा बहुत क्रुद्ध हो जाती है। वह लालजीत गड़ेरी को बुलाती है जो रामजीत गड़ेरी का भाई था और बहुत बलशाली था। रेशमा लालजीत से कहती है कि अगर वह चूहड़मल का सर काटकर उसके पास लाता है तो वह उससे शादी कर लेगी। यह सुनते ही लालजीत गड़ेरी अंजनी गांव पहुंच जाता है और चूहड़मल को युद्ध के लिए ललकारने लगता है। चूहड़मल लालजीत गड़ेरी को बहुत समझाते हैं, लेकिन जब वह नहीं मानता है। वह चूहड़मल से युद्ध करने लगता है और चूहड़मल अपनी तलवार से उसकी गरदन इतनी जोर से काटते हैं कि वह वहां से उड़ते हुए रेशमा के पास जा गिरता है। लालजीत गड़ेरी का सिर देखकर रेशमा के होश उड़ जाते हैं। लेकिन, वह बदला लेने का प्रण नहीं त्यागती है।

रेशमा एक फकीर द्वारा दिये गये नुक्खे का प्रयोग करके चौदह सौ बाघिनों को उत्पन्न करके अंजनी गांव की तरफ भेज देती है। चूहड़मल उन बाघिनों से भीषण युद्ध करते हैं और सभी को मार डालते हैं। तब रेशमा जादू टोने में निपुण अपनी सहेली सोनामती को, जो पिपरियाटांड़ में रहती थी, पूरी घटना बताती है और उससे मदद मांगती है। सोनामती रेशमा के साथ चूहड़मल से युद्ध करने के लिए निकलती है और लड़ते हुए मारी जाती है। उसके बाद खुद रेशमा एक सैनिक का वेष धरकर चूहड़मल से युद्ध के लिए पहुंच जाती है।

यह देखकर चूहड़मल घबरा जाते हैं कि स्त्री से युद्ध करना तो घर्म विरूद्ध है, पाप कर्म है। वह देवी दुर्गा से मदद मांगते हैं। तब देवी दुर्गा उपस्थित होकर एक अग्निकुंड का निर्माण कर देती है जिससे वही पार निकल सकता था, जो धर्मी है, अधर्मी उसी में जलकर भस्म हो जाता। देवी दुर्गा के निर्देशानुसार चूहड़मल उस अग्निकुंड में प्रवेश कर जाते हैं और रेशमा भी उनके पीछे-पीछे अग्निकुंड में प्रवेश कर जाती है। उस अग्निकुंड से चूहड़मल बाहर निकल आते हैं और रेशमा उसी में भस्म हो जाती है। कहा जाता है कि दुसाध जाति के लोगों द्वारा ‘राहु पूजा’, जिसमें अग्निकुंड को पार किया जाता है, देवी दुर्गा और चूहड़मल के उसी चमत्कार की वजह से की जाती है।

मगह क्षेत्र के विपरीत मिथिलांचल में चूहड़मल से संबंधित कथानक भिन्न रूप में मिलता है। वहां चूहड़मल की कथा राजा सलहेस की कथा का हिस्सा है।

राजा सलहेस की कथा के मुताबिक, चूहड़मल पकड़ियागढ़ के राजा कुलेसर के दरबार में बचपन से नौकरी करते थे। उनकी ईमानदारी, स्वामीभक्ति एवं कर्तव्यनिष्ठा के कारण कुलेसर ने चूहड़मल को अपनी बेटी चन्द्रा की रक्षा का भार सौंप दिया था। कहते हैं एक दिन सलहेस जब कुलेसर राज में फुलवारी देखने पहुंचे तो चन्द्रा सलहेस की सुंदरता, आकर्षक यौवन और प्रभावशाली व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन पर मोहित हो जाती है।

सलहेस को अपने पास लाने के उद्देश्य से चन्द्रा चूहड़मल पर चोरी का आरोप लगा देती है। चूहड़मल के लाख इनकार के बावजूद राजा कुलेसर उसे बिना मजदूरी दिये, शरीर से कपड़े तक उतरवाकर नौकरी से हटा देता है और सलहेस को चन्द्रा की सुरक्षा का भार सौंप देता है।

इस अपमान से आहत चूहड़मल प्रतिशोध की भावना से भर उठते हैं और गंगा मैया की मदद से मोकामा घाट से चन्द्रा के शयनकक्ष तक सेन काटते हुए पहुंच जाते हैं और सारे कपड़े-लत्ते, जेवर चुरा लाते हैं। इस बार आरोप सलहेस पर लगता है। राजा कुलेसर सलहेस को जेल में डाल देता है। तब मोरंग राज की मालिन बहनें नटिन का वेष धरकर असल चोर चूहड़मल को पकड़कर दरबार में हाजिर कर देती है और कुलेसर सलहेस को चोरी के आरोप से मुक्त कर देता है।

कुलेसर के द्वारा चूहड़मल से ये पूछे जाने पर उसने चोरी क्यों की, चूहड़मल साफ-साफ कहते हैं कि “मैंने जीवन में इससे पहले कभी चोरी नहीं की और न चौर कर्म में कोई दिलचस्पी है। बिना मजदूरी दिये चोरी का आरोप लगाकर मुझे दरबार से अपमानित करके भगाया गया था, उसी अपमान का बदला लेने के लिए मैंने चोरी की।” चूहड़मल की स्पष्टवादिता और सत्य के उद्भेदन से खुश होकर कुलेसर चूहड़मल को माफ कर देता है।

मगर क्षेत्र में चूहड़मल से संबंधित एक और कथा मिलती है। उस कथा के मुताबिक एक बार चूहड़मल बिहारशरीफ के सूफी संत मकदूम साहब के पास गये और मणिराम नट की तरह खुद को अपना शागिर्द बनाने का अनुरोध किया। इस पर मकदूम साहब ने चूहड़मल से कहा कि मक्का जाकर वहां से रूमाल और नगड़या (नगाड़ा) लेकर आओ। चूहड़मल तैयार हो गये और मक्का के लिए प्रस्थान कर गए। मकदूम साहब ने अपनी देवीय शक्ति से रास्ते में नान प्रकार के विघ्न पैदा किये, लेकिन चूहड़मल सभी को पार कर गये और मक्का पहुंचकर वहां से रूमाल और नगड़या ले आये।

तब मकदूम साहब ने उसकी दूसरी परीक्षा ली। उन्होंने एक बड़े बर्तन में गोमांस रख दिया और उसे एक कपड़े से ढंक दिया। फिर चूहड़मल से पूछा कि बताओ इस बर्तन में क्या है। चूहड़मल ने जवाब दिया कि मुसलमान के लिए गोमांस लेकिन हमारे लिए रबड़ी। मकदूम साहब ने जब उस बर्तन से पर्दा हटाया तो उसमें रबड़ी पाया।

चूहड़मल मकदूम साहब की सभी परीक्षाओं में पास कर गया और मकदूम साहब उसकी जादुई शक्तियों से प्रभावित होकर उन्हें अपना शागिर्द बना लिये। आज भी मकदूम साहब की मजार के पास मणिराम नट और चुल्हाय वीर का अखाड़ा है। चुल्हाय वीर चूहड़मल का ही नाम है।

संकलन: हसन इमाम, चर्चित रंगकर्मी, पटना, बिहार।

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