गाथाएं-कथाएं लोक समाज का हिस्सा हैं। लोक समाज इसके लिए अपने अनुभवों से खुरदुरी जमीन को घिसता है और तब वहां की चमकती सतह आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, न्यायिक व्यवस्थाओं को आईना दिखाने का काम करती हैं। लोककथाओं की श्रेणी में एक बंगला लोककथा:
एक साधु नदी किनारे ध्यान कर रहा था। उसे अपनी सिद्धियों से प्रभावित करने के लिए एक अन्य साधु ने पानी पर चलते हुए नदी पार की और उससे मिलने आया।
पहले साधु के पास जाकर उसने कहा, “देखा मेरा चमत्कार!”
“तुमने पानी पर चलकर नदी पार की, यही न? हां, देखा। यह तुमने कहां से सीखा?”
“बारह बरस मैंने हिमाचल में तपस्या की और हठयोग का अभ्यास किया। बारह बरस मैं एक पांव पर खड़ा रहा और सप्ताह में छह दिन उपवास रखा। तब कहीं मैं यह सीख पाया!”
पहले साधु ने कहा, “सच? यह सीखने के लिए तुम्हें इतना कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता थी। रजक मांझी केवल दो कौड़ी में नदी पार करा देता है।”