नाग से विवाह: लोकगाथा बिहुला-विषहरी की उपकथा – एक

Naag Puja. Image credit: https://jaydeepbalaji.wordpress.com/
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लोकगाथाओं के कथानक अपने साथ बहुत सारी उपकथाओं को साथ चलते हैं। ‘बिहुला-विषहरी’ अंगक्षेत्र की प्रचलित लोकगाथा है जिसमें नाग कन्याएं विषहरी बहनें महादेव की मानस पुत्रियां हैं। इस लोकगाथा की उपकथाओं में नाग पुरुष भी आते हैं। नाग कन्याओं-पुरूषों के संदर्भ में अंगिका के साहित्यकारों-विद्वत्तजनों के मतानुसार, उसका आशय नाग जनजाति से है। बहरहाल, बिहुला-विषहरी लोकगाथा की पृष्ठभूमि पर उसकी एक उपकथा कुछ इस प्रकार है:-

आदिकाल में चंपनागर नगर में एक निर्धन कुम्हार के घर एक कन्या का जन्म होता है। कुम्हार का परिवार उसके जन्म से बहुत खुश हुआ। कहते हैं कि जब उसका जन्म हुआ तब आसपास के सारे घर घर सुगंध से भर उठे थे। समय बीतता गया और वह कन्या विवाह के योग्य हो गयी, अति सुंदर और अति सुशील। कुम्हार परिवार उसके लिए योग्य वर खोजने लगे।

वर कैसा होगा, यह जानने के लिए के लिए वे सबसे पहले अपने पड़ोसी, पंडित को अपनी कन्या का जन्म पतरा पढ़ाने पहुंचते हैं। पंडित उस कन्या का पतरा पढ़कर चिंतित हो गये।  चिंतित स्वर में पंडित उनसे कहते हैं कि तुम्हारी कन्या के हाथ की रेखाओं में एक बहुत बड़ा दोष है। उस दोष के कारण सुहागरात के दिन ही उसके पति की मौत हो जाएगी। अगर इस विध्न से बचना है, तो उसका विवाह पहले एक नाग से करना होगा। वह नाग ही उस कन्या के जीवन का दोष मिटाएगा। पंडित के कहे अनुसार कुम्हार परिवार विवाह योग्य एक नाग को खोजने लगता है। काफी खोजाई के बाद एक वयस्क नाग उनके हाथ लगता है। वे उस नाग को घर लाते हैं। उसे नहलाते हैं, धुलाते हैं, उसे दूध और लावा का भोग लगाते हैं और फिर उस कन्या का विवाह उसके साथ कर देते हैं।

लोक-समाज क्या सोचेगा कि कन्या उन्हें इतना भारी पड़ रही है कि उसे मृत्यु के मुख में धकेल रहे हैं, यह सोचकर कुम्हार परिवार बिल्कुल ही सादे ढंग से विवाह संपन्न कराता है। आस-पड़ोस, किसी बधु-बान्धव को कोई निमंत्रण नहीं। विवाह के साक्षी सिर्फ पंडित होते हैं। अपनी आंखों से गंगा-यमुना बहाती कुम्हारिन विवाह पश्चात् अपनी कन्या को नाग के साथ उसके सुहाग कक्ष में भेजती है। विधि का लेख स्वीकार कर और नाग को पति मान वह कन्या अपने सुहाग कक्ष में पहुंचती है और स्वयं को उसे समर्पित कर देती है। इधर पंडित कन्या और कुम्हार परिवार को आशीर्वाद देकर और अपनी दान-दक्षिणा लेकर विदा लेते हैं। पंडित के जाते ही कुम्हार दंपत्ति जार-जार रोने लगते हैं कि अब तो वह नाग उनकी बेटी को काट खाएगा। रोते-सुबुकते उनकी आंख लग जाती है।  

भोर जब कोयल कुहुकने लगती है तब कुम्हारिन की नींद टूटती है। अनिष्ट की आशंका से वह जोर-जोर से रोने लगती है। इससे कुम्हार की भी नींद टूट जाती है। वह कुम्हारिन को ढांढस बंधता है, उसे चुप कराता है और कहता है जाओ, जाकर दरवाजा खोलो और देखो कि बेटी सुरक्षित है या नाग ने उसे काट खाया है। अगर वह सुरक्षित है, तो विघ्न टला समझो, नहीं तो अंतिम संस्कार की भी तैयारी करनी होगी। कुम्हारिन आंखों में लबालब आंसू भरे हुए, सुबुकते हुए सुहाग कक्ष का दरवाजा जैसे ही खोलती है, तेज रोशनी से उसकी आंखें चुंधिया जाती है। उस रोशनी में जब उसकी आंखें स्थिर होती है तो वह क्या देखती है कि उसकी कन्या स्वर्णजड़ित रेशमी वस्त्र पहने और मणि-माणिक्यों और हीरे-जवाहरात जड़ित स्वर्ण आभूषणों से लदी है। अपनी मां को दरवाजे पर देख उसकी बेटी दौड़ते हुए उसके गले आ लगती है।

वह अपनी मां से कहती है कि देखो, मैं कितनी भाग्यवान हूं। वह कोई नाग नहीं था, वह तो एक सुंदर राजकुमार था। उसी ने मुझे ये स्वर्णजड़ित रेशमी वस्त्र दिये, रत्नजड़ित आभूषण दिये और ये सब जो मणि-माणिक्य तुम इस कक्ष में देख रही हो, ये सब उसी ने दिये। एक नाग ने उस परिवार को क्या-क्या दिया है, इसकी खबर पूरे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गयी।

यह बात जब पड़ोस में रहने वाली एक सूदखोर साहुकार की पत्नी को पता चली तो वह डाह और लालच से भर उठी। उसकी भी एक कन्या थी, शादीयोग्य। उसे लगा कि अगर वह भी अपनी कन्या का विवाह एक नाग से कर दे, तो उसका परिवार भी उसी तरह से अमीर हो जाएगा जिस तरह से कुम्हार का परिवार अमीर हो गया था। उसने साहुकार के सामने इस बात की जिद पकड़ ली कि वह अपनी कन्या का विवाह एक नाग से करेगी। साहुकार के लाख समझाने के बावजूद कि एक नाग मणि-माणिक्य नहीं देता है, वह व्यवहार की बात नहीं है, साहूकारिन अपनी जिद पर अड़ी रही।  

अंतत: साहुकार को साहुकारिन की जिद के आगे झुकना पड़ा। फिर उसी तरह एक नाग खोजा जाता है, साहूकारिन उसको दूध-लावा परोसती है और उससे अपनी कन्या का विवाह करके उसे सुहाग कक्ष में भेज देती है। साहुकारिन रात भर बेसब्र बनी रहती है कि कब सुबह हो और सुहाग कक्ष का दरवाजा खोले और उसे ढेर सारे हीरे-जवाहरात प्राप्त हों।

सुबह होती है और बेसब्र साहुकारिन अपनी कन्या के सुहाग कक्ष का दरवाजा खोलती है और वहां का भयावह मंजर देखकर भोकार पार रोते हुए अपनी छाती पीटने लगती है। पंडित दौड़ कर वहां आता है तो देखता है कि उसकी कन्या नाग दंश से मृत पड़ी है, उसका पूरा शरीर काला पड़ चुका है।

संकलन: मीरा झा, साहित्यकार, भागलपुर, बिहार। 

Other links:
नैहर, न्यौछावर और नागराज: लोकगाथा बिहुला विषहरी की उपकथा – दो

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