फिरंगी लाल गुप्ता: बिहार के एक अनोखे संगतराश

Stone carver and senior artist Firangi Lal Gupta, Patna © Folkartopedia library
Stone carver and senior artist Firangi Lal Gupta, Patna © Folkartopedia library

बिहार में प्रस्तर या पाषाण शिल्प की परंपरा प्राचीन काल से रही है और वह परंपरा आज भी जारी है। आज भी वहां अनेक शिल्पकार हैं जो पारंपरिक तरीके से प्रस्तर शिल्प में कार्य कर रहे हैं और अनेक ऐसे भी शिल्पकार हैं जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत से नयी परंपराएं बनायी हैं। फिरंगी लाल गुप्ता उनमें से ही एक शिल्पकार हैं।

मुख्य रूप से मार्बल स्टोन को अंडरकट कार्विंग तकनीक से तराशकर कलाकृतियां गढ़ने वाले फिरंगीलाल गुप्ता का जन्म 1 फरवरी 1967 को कैमूर जिले के केशरी गांव में हुआ। उनके पिता राम आधार साह मेहनत-मजूरी का काम करते थे जबकि मां रामदुलारी देवी एक आम गृहणी थीं।

फिरंगीलाल का बचपन बेहद अभावों में बीता। कला की तरफ उनका रुझान कैसे हुआ, यह पूछे जाने पर फिरंगीलाल कहते हैं कि उम्र तो ठीक-ठीक नहीं याद है, लेकिन जब वो छोटे थे तब अपने चचेरे-ममरे भाइयों के साथ रामनवमी का मेला देखने गये, सभी भाइयों ने अपने-अपने लिए कुछ-न-कुछ खरीदा। लेकिन, वे कुछ नहीं खरीद सके क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे। बाल-मन का उदास होना स्वाभाविक था। उस मेले तरह-तरह के खिलौने बिक रहे थे जिसे उन्होंने देखा और जिसने उन्हें लुभाया। घर लौटने के बाद उन्होंने खुद ही अपने लिए खिलौने बनाने की कोशिश की। अनेक कोशिशों के बाद अंतत: वे सफल हुए, मिट्टी के खिलौने गढ़ना सीखा लिया। उनकी इस कला को एक बार स्कूल में सम्मानित किया गया, जिससे उन्हें कला के क्षेत्र में हाथ आजमाने के लिए प्रोत्साहन मिला।

अभावों के बीच ही उन्होंने 1980 में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सके। एक दो वर्ष बाद जब अपने मित्र मिर्जापुर के शिवशंकर सिंह के कहने पर वे दोनों बनारस पहुंचे। वहां उन्होंने रामनगर किले में हांथी दांत को तराशकर बनी हाथी की एक मूर्ति देखी, जिसने उनके भीतर मूर्तिकार बनने का दृढसंकल्प पैदा किया और वहीं उन्होंने ठान लिया कि अब मूर्तिकार बनना है।

Firangi Lal Gupta with his students in his studio, UMSAS campus, Patna, Bihar
© Folkartopedia Library

शिवशंकर की मदद से ही वे स्थानीय मूर्तिकार विश्वनाथ शर्मा के पास पहुंचे जो बनारस के चर्चित मूर्तिकार थे और अंडरकट कार्विंग तकनीक में माहिर थे। उन्होंने विश्वनाथ शर्मा से अपनी कला सिखाने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने फिरंगी लाल को कला सिखाने से अपरोक्ष रूप से इनकार कर दिया। फिरंगी लाल की कई कोशिशों के बाद उन्होंने अपना मार्गदर्शन देना स्वीकार लिया। इस बीच फिरंगीलाल की लगन से प्रभावित होकर विश्वनाथ शर्मा के ही मित्र और घर की पड़ोस में रहने वाले मूर्तिकार उमाशंकर विश्वकर्मा ने उन्हें मूर्तिकला और उसकी अंडरकट की तकनीक सिखाना शुरू किया। एक साथ दो गुरुओं के सानिध्य के बाद फिरंगी लाल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे मूर्तिकला में सिद्धहस्त होते चले गये। आज वे बिहार में अंडरकट तकनीक से कलाकृतियां गढ़ने वाले ख्यातिलब्ध शिल्पकार है और उनका सफर आज भी जारी है।

फिरंगी लाल जिन कलाकृतियों को मार्बल स्टोन में गढ़ते हैं उनमें हाथी, कछुआ, बत्तक, नाना प्रकार के पक्षी शामिल हैं। उनकी कला को राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने सम्मानित और प्रोत्साहित किया है। उन्हें देश-विदेश में अपनी कला प्रदर्शित करने का मौका दिया है। बिहार सरकार, भारत सरकार और फिक्की के सहयोग से फिरंगी लाल को 2008 में चीन में अपनी कला प्रदर्शित करने का मौका मिला और वहां से लौटने के बाद उन्हें वर्ष 2009-10 के लिए राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी बनायी कलाकृतियों में तीन फीट का हाथी कैमूर समाहरणालय में प्रदर्शित है जिसे उन्होंने करीब दस क्विंटल के एक मार्बल पत्थर को तराशकर बनाया है। इस कलाकृति के बाद फिरंगीलाल बनारस चले गये क्योंकि गांव में बिजली की समस्या थी।

2012 में उन्होंने पटना के उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के निमंत्रण पर संस्थान में अपनी कला का प्रदर्शन किया, जिसने वहां के कलाप्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया। ततपश्चात् उन्हें पटना और बिहार के तमाम कला एवं शिल्प आयोजनों में शिरकत करने के लिए आमंत्रित किया जाने लगा। 2017 में उन्हें बिहार सरकार की तरफ से मॉरिशस में भी अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला है।

वर्तमान समय में फिरंगीलाल गुप्ता उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधन संस्थान में अंशकालिक प्रशिक्षक के तौर पर युवा कलाकारों को मूर्तिकला का प्रशिक्षण दे रहे हैं।  

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