भोजपुरी चित्रकला

लोक का जीवन संघर्ष और लोक कला

भोजपुरी चित्रकला: सत्ता-संस्कृति हो या बाजारवाद, उनकी कोशिश लोक कला को परंपरा, धर्म व रूढ़ी की बेडि़यों में जकड़ कर एक दरबारी, सजावटी कला बना देने की रही है।

भोजपुरी अंचल (पूर्वांचल) के कोहबर चित्र का वैशिष्टय

कोहबर की परंपरागत थाति को पूर्वांचल के कलाकारों ने अपूर्व संवेदनशीलता एवं सृजनात्मक सामर्थ्य से अनुदित कर सहेजा है जिसे समझने के लिए सूक्ष्म दृष्टि की आवश्यकता है।

कोबर / कोहबर चित्रण: निरूपण एवं उसके प्रतीकार्थ

कोबर लिखिया या चित्रण वस्तुत: अनेक प्रतीक-चिन्हों का अदभुत संयोजन है। उनके अपने उद्देश्य हैं, अपनी विशेषताएं हैं, अपने सिद्धांत हैं जो विज्ञान की अवधारणाओं पर आधारित हैं।