पद्मश्री प्रोफेसर श्याम शर्मा : एक संस्मरण, लखनऊ-1966

श्याम प्रिंट-मेकिंग में पोस्ट डिप्लोमा करना चाहते थे। मुझे लगा, कमर्शियल आर्ट का डिप्लोमा करनेवाला प्रिंट-मेकिंग में काम कर पायेगा ?

पद्मश्री श्याम शर्मा की नजर से लोककला और समाज

आज व्यावसायिकता में लोककला के मूल तत्व बिखर रहे हैं। उनकी सहजता, सरलता नष्ट हो रही है। कला में परिवर्तन ग्राह्य है पर उनमेंं उच्छृंखलता का कोई स्थान नहीं है।

समकालीन कथक पर प्रलाप बेवजह: पद्मश्री शोवना नारायण

पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कथक नृत्यांगना शोवना नारायण जितनी लोकप्रिय परंपरागत कथक प्रेमियों के बीच हैं, उतनी ही लोकप्रिय समकालीन या कंटेंपररी कथक प्रेमियों के बीच भी।

पद्मश्री महासुंदरी देवी, मिथिला चित्रकला: एक परिचय

ऐसा कहा जाता है कि मिथिला चित्रकला में एक्रेलिक रंगों का पहला प्रयोग महासुंदरी देवी ने किया था और उन्होंने ही साड़ियों पर सबसे पहले मिथिला चित्र बनाये थे।

कला व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ती है : पद्मश्री गोदावरी दत्त

कला पहले व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ती है, फिर व्यक्ति से समाज को। मेरे लिए व्यक्ति और समाज अर्द्धनारीश्वर की तरह एक दूसरे पर आश्रित हैं।

कला संवादों से निखरती है हमारी कला: पद्मश्री प्रो. श्याम शर्मा

बिहार की कला में समकालीनता के तत्व सबसे पहले बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में दिखते हैं। इसी समय पटना कलम में नये विषय शामिल हुए, चित्रण हेतु नये माध्यम अपनाए गये और चित्रों में नये प्रयोग भी हुए।

अथक साधना के बाद दीर्घायु होती है कला: पद्मश्री बउवा देवी

“देश में मिथिला कला का कोई म्यूजियम नहीं है, सरकार को चाहिए कि जल्दी से जल्दी मिथिला कला का एक बढ़िया म्यूजियम बनवाये, जैसे बिहार म्यूजियम बना है, उससे भी अच्छा।”