Folkartopedia Archives

सिक्की कला की बदौलत आत्मनिर्भर हुईं गांव की महिलाएं: मुन्नी देवी

चाहे बच्चों की जरूरतों को पूरा करना हो, अपने ऊपर खर्च करना हो, किसी को टिकुली-बिन्दी, साड़ी-ब्लाउज या अपनी पसंद का कोई अन्य सामान लेना हो, हम अपने परिवार से पैसा नहीं मांगते।

संघर्ष की भट्ठी में तपकर निकले कलाकार ब्रह्मदेव राम पंडित

मिट्टी से कलाकृतियां बनाना जटिल और श्रमसाध्य काम है। इसके लिए काफी धैर्य की जरूरत होती है क्योंकि एक कलाकृति कई चरणों से गुजरने के बाद पूरी होती है।

The way we were

One of the best-known figures from Madhubani, Gauri Mishra questioned and challenged the orthodoxies and worked relentlessly for women’s empowerment, says Sujata Prasad

ठेंस : फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी

फणीश्वरनाथ रेणु ने कई चर्चित कहानियां लिखी हैं। ‘ठेंस’ उनमें से एक है। यह कहानी एक छोटे से गांव के छोटी जाती के उस बड़े हृदय वाले कारीगर की है जो अंत में आपके हृदय में अपनी छाप छोड़ जाता है।

फणीश्वरनाथ रेणु: जन्मशती वर्ष प्रवेश (1921 – 1977)

आज हिन्दी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार फणीश्‍वरनाथ रेणु का जन्मदिन है और उनके जन्मशती वर्ष का प्रवेश भी। रेणु जी का जन्म बिहार के अररिया जिले में फारबिसगंज के पास के गांव औराही हिंगना में 4 मार्च 1921 को हुआ था।

कला व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ती है : पद्मश्री गोदावरी दत्त

कला पहले व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ती है, फिर व्यक्ति से समाज को। मेरे लिए व्यक्ति और समाज अर्द्धनारीश्वर की तरह एक दूसरे पर आश्रित हैं।

पमरिया लोक नाच: पुश्तैनी गुण या पुश्तैनी गुनाह

इस्लाम को मानने वाले पमरिया महेशवाणी गाते हैं, दास्तान भी खूब सुनाते हैं जिसमें हिन्दू और मुस्लिम संप्रदाय के चिन्हों, प्रतीकों की दिलचस्प आवजाही होती रहती है।

सिक्की कला ने संवार दी ‘सूरत’: नाजदा खातून

गरीबी को आमलोग अपनी नियति मान लेते हैं। नाजदा ने गरीबी के खिलाफ नियति से जंग छेड़ दी। दादी ने सिक्की से खेलना सिखाया था, उन्होंने सिक्की से कामयाबी की इबारत लिख दी।

कला संवादों से निखरती है हमारी कला: पद्मश्री प्रो. श्याम शर्मा

बिहार की कला में समकालीनता के तत्व सबसे पहले बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में दिखते हैं। इसी समय पटना कलम में नये विषय शामिल हुए, चित्रण हेतु नये माध्यम अपनाए गये और चित्रों में नये प्रयोग भी हुए।

प्रतीकों की लड़ाई का परिणाम हैं गोदना चित्र: शिवन पासवान

आज गोदना कला में अनेक युवा कलाकार बढ़िया चित्र बना रहे हैं, लेकिन उसमें कोमलता का भाव गायब है। वे कमाई करने वाली मशीन बनते जा रहे हैं।

जीवन के यथार्थवादी चित्रण ने दिलायी पहचान: दुलारी देवी

हमलोग धार्मिक कहानियां, धार्मिक आख्यान या पौराणिक कथाओं को जानते ही कहां थे। आज भी उनके बारे में बहुत खास जानकारी नहीं है।

अथक साधना के बाद दीर्घायु होती है कला: पद्मश्री बउवा देवी

“देश में मिथिला कला का कोई म्यूजियम नहीं है, सरकार को चाहिए कि जल्दी से जल्दी मिथिला कला का एक बढ़िया म्यूजियम बनवाये, जैसे बिहार म्यूजियम बना है, उससे भी अच्छा।”