Folkartopedia Archives

बिहार: हाशिये पर सलहेस लोककलाकार

लोकगाथा राजा सलहेस ने बिहार में एक संस्कृति को जन्म दिया जो समतामूलक समाज की मांग करता है। यह साधनसंपन्न सवर्ण समाज के लिए पचा पाना आसान नहीं है।

लोकगाथा राजा सलहेस की साहित्यिक विवेचना

राजा सलहेस की महागाथा संपूर्ण शूद्रों की महागाथा है जिसमें लोकगाथा की सभी विशेषताएं परिलक्षित हैं। इसमें दलितों और सर्वहारा वर्ग की वर्गीय चेतना का मानवीकरण मिलता है।

मलूटी: मंदिरों का एक अनोखा गांव

मलूटी के मंदिरों से साक्षात्कार के दौरान यह प्रश्न स्वत: उभरता है कि आखिर वे कौन-सी परिस्थितियां हैं, जब स्थानीय जनमानस अपने धरोहरों के प्रति उदासीन हो जाता है।

कालचक्र के समक्ष विवश एक सिद्ध कलाकार: गुप्ता ईश्वरचंद प्रसाद

एक फिल्मी कहानी की तरह है बिहार के ख्यातिलब्ध कलाकार गुप्ता ईश्वरचंद प्रसाद का जीवन। टेराकोटा से प्रेम, कला में जीवटता, वरिष्ठ कलाकारों का सानिध्य, विदेश की यात्रा, सबकुछ गंवाना और फिर फकीरी…

पद्मश्री श्याम शर्मा की नजर से लोककला और समाज

आज व्यावसायिकता में लोककला के मूल तत्व बिखर रहे हैं। उनकी सहजता, सरलता नष्ट हो रही है। कला में परिवर्तन ग्राह्य है पर उनमेंं उच्छृंखलता का कोई स्थान नहीं है।

कला के वर्तमान पर चिंतन जरूरी: आनंदी प्रसाद बादल

वरिष्ठ कलाकार आनंदी प्रसाद बादल बिहार में आधुनिक कला के विकास के साक्षी रहे हैं। उनकी कला-यात्रा को समझना बिहार में आधुनिक-कला की यात्रा से एक साक्षात्कार समान है।

दुलारी देवी, मिथिला चित्रकला: एक परिचय

दुलारी देवी का जन्म मधुबनी के रांटी गांव के एक मछुआरा परिवार में 27 दिसंबर 1967 को हुआ। उन्हें बिहार की लोककला में एक यथार्थवादी चित्रकार का विशेषण दिया जाता है।

पद्मश्री सीता देवी, मिथिला चित्रकला: एक परिचय

सीता देवी का जन्म 1914 में बसहा के एक महापात्र ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चुमन झा और मां का नाम सोन देवी था। उन्होंने अपनी और नानी से चित्र बनाना सीखा था।

समकालीन कथक पर प्रलाप बेवजह: पद्मश्री शोवना नारायण

पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कथक नृत्यांगना शोवना नारायण जितनी लोकप्रिय परंपरागत कथक प्रेमियों के बीच हैं, उतनी ही लोकप्रिय समकालीन या कंटेंपररी कथक प्रेमियों के बीच भी।

मिथिला चित्रकला का ‘लोक’ और उसकी प्रवृत्तियां

1970 के दशक में जब ब्राह्मण और कायस्थ जाति की परंपरागत चित्रकला अपनी लोकप्रियता की ओर बढ़ रही थी, तब उसे स्थानीय लोक कलाकारों ने स्पष्ट चुनौती दी।

पद्मश्री महासुंदरी देवी, मिथिला चित्रकला: एक परिचय

ऐसा कहा जाता है कि मिथिला चित्रकला में एक्रेलिक रंगों का पहला प्रयोग महासुंदरी देवी ने किया था और उन्होंने ही साड़ियों पर सबसे पहले मिथिला चित्र बनाये थे।

क्या लौट पाएगी सिक्की कला की चमक? मिथिलांचल से एक रिपोर्ट

जब हम यह कहते है कि कला का क्या मोल, वह तो अनमोल है, तब हम लोक कलाकारों की दुर्दशा से अपनी नजर फेर लेने का स्वांग करते हैं। पढ़िये सिक्की कला पर मिथिलांचल से यह रिपोर्ट।

बिहार की पहली आधुनिक महिला चित्रकार: कुमुद शर्मा

कुमुद शर्मा बिहार की पहली महिला चित्रकार थीं, जिन्होंने राष्ट्रीय समकालीन कला आन्दोलन में अपनी अहम भूमिका निभायी। उनका जन्म 1926 में पटना में हुआ।

बिहार के लोकगीतों की स्वर-कोकिला: पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी

विंध्यवासिनी देवी को ‘’बिहार कोकिला’’ भी कहा जाता है जिन्होंने न केवल बिहार के लोकगीतों को अपनी आवाज दी बल्कि उनका संकलन और विस्तार दोनों किया।

पद्मश्री जगदम्बा देवी, मिथिला चित्रकला: एक परिचय

मिथिला चित्रकला जिन कलाकारों के जरिए वैश्विक पटल पर उभरी, उनमें एक पद्मश्री जगदम्बा देवी हैं। उनका जन्म 1901 को मधुबनी के भजपरौल में हुआ था।

चक्रवर्ती देवी से मिली मंजूषा चित्रों को पहचान

स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी मंजूषा चित्रकला की सबसे ख्यातिलब्ध चित्रकार हैं।1980 के दशक में सरकारी प्रयासों से यह चित्रकला प्रकाश में आयी, जिसमें चक्रवर्ती देवी का महत्वपूर्ण योगदान था।

पानी पर चलना: लोककथा

व्यवस्थाएं, अपने पक्ष में षडयंत्र रचती हैं, गठजोड़ करती हैंं और मोहरची उस पर मुहर लगाता है। उसी व्यवस्था के चरित्रों को उजागर करती यह लोककथा आप सबके समक्ष प्रस्तुत है।

माली कला और शिल्प, बिहार

बिहार की लोककलाओं में कटिहार और पूर्णिया की माली कला का विशिष्ट स्थान है और आधुनिकता की दौड़ के बावजूद स्थानीय मालाकार परिवारों ने इसे जिंदा रखा है।

राजा भरतहरी की कथा: भाग-3

सत्तर हिरणियां कहती हैं, ‘‘हे राजा हमारे पति को क्यों मारते हो? उसके बिना हम हिरणियां इस वन में विधवा डोलेंगी। तू हममें से दो चार को मार ले, हमारे भरतार को छोड़ दे।”

राजा भरतहरी की कथा: भाग-2

विक्रमादीत रानी और नौकर को महल में साथ–साथ देख लेता है। रानी तब नौकर से कहती है कि तुम घबराओ मत, मैं अपने देवर को देश निकाला दिलवाऊंगी।

राजा भरतहरी की कथा: भाग-1

रात के आधे पहर रेंगटा लाखा कुम्हार को आवाज़ लगाता है कि पैपावती नगरी के राजा को जाकर कहे कि वह अपनी लड़की पानदे बाई का विवाह उससे कर दे।

राजा भरतहरी की कथा: परिचय

राजा भरतहरी की कथा देवी दुर्गा की स्तुति से शुरू होती है। कथा को गद्य और पद्य दोनों में गाया जाता है। बीच–बीच में नैतिकता का संदेश देते दोहे बोले जाते हैं।

मंजूषा कला का वर्तमान एवं भविष्य: एक आत्मपरीक्षण

लोक-कलाओं का वर्तमान इसकी गवाही देता है कि जब तक उन्होंने क्षेत्रीयता के दायरे से बाहर झांकने की कोशिश नहीं की है, उनका दृष्टिकोण व्यापक नहीं हुआ, उन्हें पहचान नहीं मिली है।

कला नितांत ही व्यक्तिगत साधना है: पद्मश्री श्याम शर्मा

आर्ट कॉलेज की स्थिति यह है कि मेरे पास लोटा भर पानी है और छात्र उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें बाल्टी भर पानी मिल जाए। यह कैसे संभव है। हमने अपने पात्र बड़े किये ही नहीं।